प्रेगनेंसी किसी भी महिला के जीवन के सभी खूबसूरत पलों में एक है। हर महिला चाहती है की उसका शिशु बिलकुल स्वस्थ और तंदुरुस्त पैदा हो। खुद महिला या शिशु को किसी भी तरह की कोई परेशानी न हो इसलिए प्रेगनेंट महिला अपने दैनिक जीवन के सभी पहलुओं पर ध्यान देती है। इसमें खान पान, समय पर जागना, समय पर सोना, सुबह पोषक तत्व वाले आहार लेना, संतुलित मात्रा में पानी पीना, सुबह में कुछ समय के लिए टहलना, हल्का फूलका योग करना आदि शामिल है।
प्रेगनेंसी के समय एक महिला के शरीर में कई तरह के हार्मोनल बदलाव होते हैं। हार्मोनल बदलाव की वजह से महिला के शरीर में कई तरह की समस्याएं भी पैदा होती है। इन्ही समस्याओं में से एक थाइराइड की समस्या है। पुरुषों की तुलना में यह बीमारी महिलाओं में ज्यादा पायी जाती है। अगर शुरू में इसपर ध्यान नहीं दिया गया तो आगे यह दूसरी कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती है।
थायराइड गर्दन के निचले हिस्से में तितली के आकार जैसी बनी एक ग्रंथि यानी की ग्लैंड है जो शरीर की हर कोशिका को प्रभावित और मेटालोबील्जम को कंट्रोल करने का काम करती है। आप दिन भर में जिन भी चीजों को खाते पीते हैं ये ग्लैंड उन्हें ऊर्जा में बदलती है। थायराइड शरीर के अंदर कई तरह के हार्मोन को बनाने और उनके स्राव को कंट्रोल करने का काम करती है।
जब थायराइड ग्रंथि शरीर में जरुरत से ज्यादा या जरुरत से कम मात्रा में हार्मोन बनाती है तो थायराइड की समस्या सामने आती है। शरीर में जरुरत से ज्यादा या कम हार्मोन होने की वजह से शरीर ठीक तरह से काम नहीं करता है और आपको ढेरों परेशानियां शुरू हो जाती हैं।
प्रेगनेंसी में थायराइड के कारण
मुख्य रूप से थायराइड के दो प्रकार होते हैं जिन्हे हम हाइपोथायरायडिज्म और हायपरथायरायडिज्म के नाम से जानते हैं। हाइपोथायरायडिज्म की स्थिति में थायराइड शरीर के जरूरत से कम हार्मोन्स का निर्माण करती है और हायपरथायरायडिज्म की स्थिति में थायरायस शरीर के जरूरत से ज्यादा मात्रा में हार्मोन्स का निर्माण करती है।
प्रेगनेंसी के दौरान इन दोनों थायराइड के होने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:
हाइपोथायरायडिज्म के कारण
- थायराइड के खराब होने की वजह से यह ठीक तरह से काम करना बंद कर देता है।
- किसी बीमारी के इलाज के दौरान थायराइड ग्लैंड को निकाल देने की वजह से।
- लेजर ट्रीटमेंट या किसी दवा के साइड इफेक्ट्स की वजह से।
- पिट्यूटरी बीमारी की वजह से।
- एंडेमिक गोइटर और फूड्स में आयोडीन की कमी होने की वजह से।
- प्रेगनेंसी के दौरान 100 में से दो से तीन महिलाओं को हाशिमोटो नामक ऑटोइम्यून बीमारी होने का खतरा होता है। जिसकी वजह से महिला की इम्यून सिस्टम एंटीबॉडी का उत्पादन करती है जो आगे थायराइड ग्लैंड को प्रभावित करती हैं।
हाइपरथायरायडिज्म के कारण
- ऑटो इम्यून सिस्टम खराब होने के कारण ग्रेव डिजीज की समस्या सामने आती है। यह बीमारी एक हजार प्रेगनेंट महिलाओं में से एक से चार को प्रभावित करती है। इस स्थिति में इम्यून सिस्टम एंटीबॉडी का निर्माण करता है जिसकी वजह से थायराइड ग्लैंड शरीर में जरुरत से ज्यादा मात्रा में हार्मोन्स का निर्माण करने लगती है।
- थायराइड ग्लैंड में नोड्यूल्स बने होते हैं जो थायराइड हार्मोन्स को प्रभावित करते हैं। थायराइड के प्रभावित होने की वजह से शरीर का रासायनिक संतुलन बिगड़ जाता है।
- थायराइड में सूजन होने की वजह से ग्लैंड जरूरत से ज्यादा हार्मोन्स का निर्माण करने लगती है। इसके अलावा पिट्यूरी ग्लैंड खराब होने और कैंसर सेल्स के विकसित होने की वजह से हार्मोन्स का प्रवाह भी तेज हो जाता है।
प्रेगनेंसी में थायराइड के लक्षण
जैसे दूसरी किसी भी बीमारी के लक्षण होते हैं वैसे ही प्रेगनेंसी के दौरान थायराइड होने के कुछ लक्षण हैं। इनकी मदद से आप या आपके डॉक्टर इस बात का बहुत आसानी से पता लगा सकते हैं की आप थायराइड से पीड़ित हैं। प्रेगनेंसी के दौरान थायराइड की समस्या होने पर तुरंत डॉक्टर से मिलकर इसका जांच और इलाज करानी चाहिए।
हाइपोथायरायडिज्म के लक्षण
- टीएसएच का लेवल बढ़ना और टी4 का घटना।
- चेहरे में सूजन आना।
- स्किन टाइट होना।
- थकावट महसूस करना।
- कमजोरी महसूस करना।
- नब्ज का धीमा होना।
- खाना समय पर हजम नहीं होना।
- गैस और कब्ज की समस्या होना।
- पेट खराब होना।
- पेशाब में खराबी।
- ठंठ लगना।
- मोटापा होना।
- शरीर में तनाव और ऐंठन महसूस करना।
- मन विचलित होना।
- एक चीज में ध्यान न लगा पाना।
- याददाश्त प्रभावित होना।
हाइपरथायरायडिज्म
- थायराइड का लेवल बढ़ना।
- थायराइड का साइज बढ़ना।
- थकावट महसूस करना।
- धड़कन तेज होना।
- कम भूख लगना।
- चक्कर आना।
- उलटी आना।
- ज्यादा पसीना होना।
- नजर कमजोर होना।
- ब्लड शुगर बढ़ना।
इन बातों का रखें ध्यान
प्रेगनेंसी के समय थायराइड की समस्या होना आम बात है। लेकिन अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह गंभीर रूप ले सकता है और इस स्थिति में प्रेगनेंट महिला और शिशु दोनों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। एक रिसर्च के मुताबिक यह बात सामने आई है की भारत में लगभग चार करोड़ से ज्यादा लोग थायराइड के मरीज हैं और लगभग इनमें से 90% लोगों को यह पता नहीं होता है की वह इस बीमारी से पीड़ित है। साथ ही यह बात भी सामने आई है हर दस मरीज में से सात या आठ महिलाएं होती हैं।
प्रेगनेंट महिलाओं में थायराइड सामान्य बीमारी है। प्रेगनेंसी के समय थाइराइड की समस्या से बचने के लिए आपको कुछ खास चीजों का ध्यान रखना चाहिए ताकि आप और आपका शिशु दोनों सही सलामत रह सकें। नीचे लिखी हुई बातों का ध्यान रखें:
- थायराइस से छुटकारा पाने के लिए इसका समय पर सही इलाज जरूरी है। इसलिए आप प्रेगनेंसी के दौरान समय समय पर थायराइड की जांच कराते रहें।
- प्रेगनेंसी के दौरान थायराइड के इलाज के लिए ली जाने वाली दवा का डोज अपने जरूरत के मुताबिक घटाया और बढ़ाया जा सकता है। ऐसा करने से आप और आपके शिशु पर किसी तरह का कोई गलत प्रभाव नहीं पड़ता है।
- हाइपोथायराइड की स्थिति में गर्भपात होने का खतरा बढ़ जाता है। कभी कभी गर्भ में ही भ्रूण की मृत्यु भी हो जाती है। ऐसी स्थिति में खुद को और अपने शिशु को सुरक्षित रखने के लिए आपको अपने खान पान को संतुलित करना चाहिए। साथ ही समय समय पर अपने डॉक्टर से मिलकर अपनी परेशानी बताएं और उनकी सलाह को फॉलो करें।
- थायराइड की वजह से शिशु के शारीरिक और मानसिक विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है जिसकी वजह से शिशु असामान्य भी हो सकता है। समय निकाल कर सुबह के समय थोड़ी देर के लिए टहलें और डॉक्टर से सलाह लेने के बाद हल्का फूलका योग भी करें ताकि आपका शरीर फिट रहे।
- प्रेगनेंसी या थायराइड किसी भी चीज से जुडी उन्ही दवाओं को उसी मात्रा में खाएं जैसा आपके डॉक्टर ने कहा है। अपने मन मुताबिक किसी भी तरह की दवा खाने से बचें। साथ ही समय समय पर अपनी प्रेगनेंसी और थायराइड दोनों की जांच करवाते रहें।
- प्रेगनेंसी के दौरान कब्ज की समस्या बढ़ जाती है इसलिए पाचन क्रिया का ठीक होना बहुत जरूरी है। कोशिश करें की आप अपने फूड्स में ज्यादा से ज्यादा फाइबर लें। क्योंकि इससे गैस या कब्ज होने का खतरा नहीं होता है।
- थायराइड की समस्या गंभीर होने की स्थिति में इसका इलाज आयोडीन थेरेपी या सर्जरी के जरिए किया जा सकता है।
- थायराइड को कंट्रोल करने में आयोडीन बहुत सहायक होता है। इसलिए आपको प्राकृतिक आयोडीन जैसे की टमाटर, प्याज और लहसुन को खाना चाहिए।
- दिन भर में कम से कम तीन से चार लीटर पानी और एक से दो ग्लास ज्यूस पीएं। ऐसा करने से शरीर में मौजूद विषैले पदार्थ शरीर से बाहर निकल जाते हैं। आप चाहें तो सप्ताह में एक बात नारियल का पानी भी पी सकती हैं।
- अपने खाने में विटामिन ए वाली सब्जियों को शामिल करें। क्योंकि ये थायराइड को कंट्रोल करने में काफी मददगार साबित होती हैं। (आगे पढ़े: प्रेगनेंसी में क्या खाएं और किस से करें परहेज )
- इस स्थिति में सफेद नमक से परहेज करें और सेंघा नमक या काला नमक का इस्तेमाल करें।
- एक रिसर्च के जरिए यह बात सामने आई है की प्रेगनेंसी के पहले तीन महीने के दौरान आपके शरीर में थायराइड का लेवल 0.1 से 2.5 एमएल की बीच होना चाहिए। इसलिए यह जरूरी है की आप समय समय पर अपने डॉक्टर से मिलें और इसकी जांच करवाते रहें।
- थायराइड का लेवल बढ़ना आप और आपके शिशु दोनों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
- शिशु के जन्म लेने के चार से पांच दिन के बाद उसका भी थायराइड टेस्ट करवाएं।
खास बात
प्रेगनेंसी के समय आप किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहती हैं। साथ ही आप हर एक वो कोशिश करती हैं जो आप और आपके शिशु को स्वास्थ्य और तंदुरुस्त रखता है। प्रेगनेंसी के दौरान जीवन में अच्छे बदलाव लाने, व्यायाम और योग करने तथा अपने खान पान पर ध्यान देने के बाद भी आपको डॉक्टर से मिलकर अपनी प्रेगनेंसी और थायराइड का जांच समय समय पर करवाना चाहिए। प्रेगनेंसी के दौरान थायराइड को नजरअंदाज करना आपके लिए खतरा पैदा कर सकता है।
जब तक आपका शिशु सुरक्षित तरीके से जन्म नहीं ले लेता तब तक आप अपने डॉक्टर के संपर्क में बने रहें। जब भी आपको आपने शरीर में किसी तरह की परेशानी, बेचैनी या समस्याएं महसूस हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करे। डॉक्टर की सलाह के मुताबिक अपने दैनिक जीवन को फॉलो करें।
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डिस्क्लेमर: यह ब्लॉग सामान्य जानकारी के लिए लिखा गया है| अगर आप किसी बीमारी से ग्रसित हैं तो कृपया डॉक्टर से परामर्श जरूर लें और डॉक्टर के सुझावों के आधार पर ही कोई निर्णय लें|