varicocele-ka-gharelu-upchar-in-hindi

वैरीकोसेल क्या है? – What Is Varicocele in Hindi ?

अंडकोष की थैली में नसों के आकार बढ़ने को वैरीकोसेल कहते हैं। नसों में वॉल्व मौजूद होते हैं जो खून को अंडकोष से दिल तक ले जाने में मदद करते हैं। लेकिन वॉल्व के खराब होने या ठीक से काम नहीं करने के कारण खून एक ही जगह इकठ्ठा हो जाता है।  इसकी वजह से स्क्रोटम और उसके आस-पास की थैली में सूजन होने लगता है जो आगे चलकर वैरीकोसेल का रूप ले लेता है। वैरीकोसेल स्पर्म प्रोडक्शन और उन फंक्शन को प्रभावित करता है जो इन्फर्टिलिटी का कारण बन सकते हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि 15 से 30 वर्ष की उम्र के बीच लगभग 15 प्रतिशत पुरुष इस बीमारी से प्रभावित होते हैं। इसके ढेरों कारण मौजूद हैं, लेकिन अभी तक इसके सटीक कारणों का पता नहीं लगाया जा सका है। वैरीकोसेल कोई गंभीर बीमारी नहीं है, लेकिन लंबे समय तक इसे नजरअंदाज करने या इसका समय पर सही इलाज नहीं कराना दूसरी कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है। 

वैरीकोसेल के प्रकार  – Types Of Varicocele in Hindi

वैरीकोसेल तीन प्रकार के होते हैं। इन्हें हम ग्रेड 1 वैरीकोसेल, ग्रेड 2 वैरीकोसेल और ग्रेड 3 वैरीकोसेल के नाम से जानते हैं।

ग्रेड 1 वैरीकोसेल क्या है – Grade 1 Varicocele in Hindi

ग्रेड 1 वैरीकोसेल में अंडकोष के थैली की नसें बढ़ जाती है। ये दिखाई तो नहीं देती हैं लेकिन इन्हें वलसल्वा मनुवेर (Valsalva Maneuver) के जरिए महसूस जरूर किया जा सकता है। वलसल्वा मनुवेर सांस लेने की एक तकनीक है जिससे छाती में दबाव बढ़ता है। यह शरीर में बहुत सारे प्रभाव डालता है जैसे कि दिल की धड़कन और ब्लड प्रेशर में बदलाव लाना।

इसे भी पढ़ें: प्रेग्नेंट कैसे हों, जाने इसके आसान उपाय

ग्रेड 2 वैरीकोसेल क्या है – Grade 2 Varicocele in Hindi

‘ग्रेड 2 वैरीकोसेल’ ग्रेड 1 और ग्रेड 3 के बीच की एक स्थिति है। इस स्थिति में अंडकोष की थैली में नसों के आकार के बढ़ने की वजह से यह स्पर्म प्रोडक्शन और उन फंक्शन को प्रभावित करता है जो आगे जाकर बांझपन का कारण बन सकते हैं। रिसर्च के मुताबिक सौ में से लगभग दस लोग ग्रेड 2 वैरीकोसेल से पीड़ित होते हैं।

ग्रेड 3 वैरीकोसेल क्या है – Grade 3 Varicocele in Hindi

ग्रेड 3 वैरीकोसेल की स्थिति में टेस्टिकल की नसें बढ़ जाती है और साफ तौर पर बाहर की तरफ दिखाई देती हैं। रिसर्च के मुताबिक सौ में से लगभग दस से पंद्रह लोग इस बीमारी से पीड़ित होते हैं। इसमें प्रजनन क्षमता प्रभावित होने की पूरी संभावना होती है।

वैरीकोसेल के कारण – Causes Of Varicocele in Hindi

दूसरी बीमारियों की तरह वैरीकोसेल के भी कुछ खास कारण होते हैं। अगर आप पहले ही इनके बारे में जान लें तो कुछ सावधानी बरतकर खुद को इस बीमारी का शिकार होने से बचा सकते हैं।  

  • पुबर्टी
  • अंडकोष में ब्लड सर्कुलेशन तेज होना
  • बढ़ता वजन
  • खड़े होकर पानी पीना।
  • चोट लगना या घाव होना।
  • शुक्राणु कॉर्ड में रुकावट होना।
  • बिना किसी प्रोटेक्टिव गियर के व्यायाम करना।
  • एपिडिडीमाइटिस जैसे संक्रमण से पीड़ित होना।

वैरीकोसेल के लक्षण – Symptoms Of Varicocele in Hindi

आमतौर पर वैरीकोसेल के शुरूआती स्टेज में लक्षणों का पता नहीं चल पाता है। जिसकी वजह से धीरे-धीरे यह गंभीर रूप ले लेता है। फिर आपको अंडकोष में परेशानियां महसूस होना शुरू होती हैं। जांच करवाने के बाद इस बात की पुष्टि होती है कि आप वैरीकोसेल से पीड़ित हैं। इतना कुछ होते बहुत समय बीत जाता है और आपकी बीमारी जटिल रूप ले लेती है।

वैरिकोसेल के लक्षणों पर नजर कसकर आप इसे शुरुआत में ही पकड़ सकते हैं।सही समय पर डॉक्टर के पास जाकर उपचार लेने से होने वाली जटिलताओं का जोखिम बहुत कम हो जाएगा।

 

  • नसों में सूजन होना।
  • समय के साथ दर्द बढ़ना।
  • खड़े होने पर तेज दर्द होना।
  • कभी कभी बहुत बेचैनी होना।
  • पीठ के बल लेटने पर दर्द होना।
  • अंडकोष की थैली में गांठ होना।
  • दिन में अधिक दर्द और बेचैनी होना।
  • शारीरिक काम के दौरान असहनीय पीड़ा होना। 

वैरीकोसेल के घरेलू इलाज – Home Remedies For Varicocele in Hindi

Varicocele Ka Gharelu Upchar in Hindi वैरीकोसेल के घरेलू उपचार में हेल्दी डाइट बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। विशेषज्ञों का मानना है की एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर डाइट वैरीकोसेल को रोकने और प्रजनन क्षमता को बढ़ाने का काफी प्रभावशाली उपाय है। कई बार एंटीऑक्सीडेंट की वजह से कब्ज होने का खतरा भी रहता है। इसलिए एंटीऑक्सीडेंट के साथ-साथ फाइबर से भरपूर चीजों को भी अपनी डाइट में शामिल करना चाहिए। नीचे हम आपको उन घरेलू उपायों के बारे में बता रहे हैं जिनकी मदद से आप घर बैठे अपनी वैरीकोसेल की समस्या से छुटकारा पा सकते हैं। 

इसे भी पढ़ें: पिलोनिडल साइनस — कारण, लक्षण, जोखिम और घरेलू इलाज

  • नियमित रूप से ब्लूबेरी खाने से वैरीकोसेल में राहत मिलती है। 
  • मटर का सेवन करने से वैरीकोसेल के लक्षणों से आराम मिलता है। 
  • केले में मौजूद तत्व वैरीकोसेल की समस्या को दूर करने में मदद करते हैं।  
  • वैरीकोसेल की समस्या से छुटकारा पाने के लिए अपनी डाइट में बींस को शामिल करना चाहिए। 
  • धनिया में कुछ औषधीय गुण पाए जाते हैं जो वैसिकोसेल को दूर करने में मददगार साबित होते हैं। 
  • ऐसा माना जाता है की रसभरी का सेवन करने से वैरीकोसेल की समस्या से काफी हद तक राहत मिलती है।  
  • चिया सीड्स का सेवन करने से इम्यून सिस्टम मजबूत तथा वैरीकोसेल जैसी समस्या खत्म होती है।   
  • लोगों का ऐसा मना है की वैरीकोसेल से पीड़ित होने की स्थिति में रेड वाइन का सेवन करने से काफी फायदा होता है।  
  • ओट्स पोषक तत्वों से भरपूर होता है। अगर आप अपनी वैरीकोसेल की परेशानी से छुटकारा पाने चाहते हैं तो इसे नाश्ते के रूप में ले सकते हैं। (आगे पढ़ें:
  • वैरीकोसेल से छुटकारा पाने के लिए ब्रोकली बेहतरीन घरेलू उपायों में एक है। इसका सेवन करने से इस समस्या से काफी हद तक आराम मिलता है।  
  • क्रैनबेरी दिल को स्वस्थ रखता है जिसके कारण शरीर में सही से ब्लड फ्लो होता है। ब्लड फ्लो सही होने कारण वैरीकोसेल की समस्या धीरे धीरे खत्म हो जाती है।  
  • वैरीकोसेल को दूर करने के लिए प्रभावशाली घरेलू उपायों में फूलगोभी भी शामिल है। आप इसे अपनी डाइट में शामिल कर इस समस्या से छुटकारा पा सकते हैं।   
  • ग्रीन टी शरीर को कई तरह से फायदा पहुंचाता है। इन्ही में से एक हैं वैरीकोसेल की परेशानी को कम करना। वैरीकोसेल की समस्या से बचने के लिए आपको दिन में दो बार सुबह और शाम ग्रीन टी पीनी चाहिए।   
  • डार्क चॉकलेट के ढेरों फायदे हैं। इन्ही फायदों में से एक फायदा वैरीकोसेल से मुक्ति पाना है। अगर आप इस बीमारी से पीड़ित हैं तो घर बैठे डार्क चॉकलेट की मदद से इससे छुटकारा पा सकते हैं।  
  • वैरिकॉले की समस्या से बचने के लिए आप कोलार्ड ग्रीन्स का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। आप चाहें तो इसे अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं। इसमें वो सभी आवश्यक तत्व पाए जाते हैं जो वैरीकोसेल की समस्या को दूर करने का काम करते हैं।    
  • एवोकाडो पोषक तत्वों से भरपूर है। इसका सेवन कई तरह की समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है। Varicocele Ka Gharelu Upchar in Hindi इसमें कुछ ऐसे औषधीय गुण पाए जाते हैं जो वैरीकोसेल के लक्षणों को कम तथा इस बीमारी को धीरे धीरे खत्म करने में सहायक साबित होते हैं।   
  • इसके अलावा, आपको एथलीट अंडरवियर का इस्तेमाल करना चाहिए तथा खुद में वैरीकोसेल के लक्षण देखने पर तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए। Varicocele Ka Gharelu Upchar in Hindi वैरीकोसेल के दर्द को दूर करने के लिए एसिटामिनोफेन का इस्तेमाल भी किया जा सकता है।

योग भी वैरीकोसेल में बहुत फायदेमंद माना जाता है। ये टेस्टिस में सूजन को कम, ब्लड सर्कुलेशन और प्रजनन क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है। Varicocele Ka Gharelu Upchar in Hindi इसलिए आप ब्रिज पोज, सर्वांगसन या स्पोर्ट सोल्डर पोज को रोजाना सुबह कुछ समय के लिए प्रैक्टिस कर सकते हैं। टेस्टिस गर्म होने से ढेरों समस्याएं पैदा होती हैं इसलिए कूलिंग शावर का इस्तेमाल करें। यह आपके शरीर के तापमान को कम करने के साथ साथ सिकुड़ी हुई नसों को ठीक और सूजन को कम करने में मदद करता है।

आगे पढ़ें: प्राइवेट पार्ट्स का कालापन कैसे दूर करें

इन सबके अलावा, आप दूसरे भी कई मॉडर्न तरीकों से वैरीकोसेल का इलाज करवा सकते हैं। इन मॉडर्न इलाज को परफॉर्म करने से पहले डॉक्टर मरीज की कुछ जांच करते हैं। ताकि वह बीमारी और उसकी स्थिति को अच्छी तरह से समझ सकें। Varicocele Ka Gharelu Upchar in Hindi वे शारीरिक परीक्षण करते हैं। टेस्टिकल की थैली में पानी है या नहीं, इस बात को जानने के लिए खून की जांच और एक्स-रे करते हैं। साथ ही साथ सूजन होने के कारण को जानने के लिए अल्ट्रासाउंड करने का सुझाव भी दे सकते हैं। 

शारीरिक परीक्षण के दौरान डॉक्टर कोमलता की जांच करते हैं। वीर्य विश्लेषण और हार्मोन परीक्षण की मदद से डॉक्टर कुछ उत्तेजक हार्मोन और कम टेस्टोस्टेरोन का पता लगाने के लिए करते हैं। टेस्टिकल के अल्ट्रासाउंड के दौरान हाई फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल करके टेस्टिकल की फोटो ली जाती है। इसकी मदद से डॉक्टर को इस बात की पृष्टि करने में मदद मिलती है कि टेस्टिकल में वैरीकोसेल होने के क्या लक्षण हैं।  

जांच करने के बाद डॉक्टर इलाज के माध्यम का चुनाव करते हैं जिसमें वैरीकोसेल प्रतीक, ओपन वैरीकोसेलेटॉमी, माइक्रोस्कोपिक वैरीकोसेलेटॉमी और लेप्रोस्कोपिक वैरीकोसेलेटॉमी शामिल हैं। Varicocele Ka Gharelu Upchar in Hindi इन सब में लेप्रोस्कोपिक वैरीकोसेलेटॉमी को सबसे बेहतर और सटीक इलाज माना जाता है। क्योंकि इस सर्जरी के कट का साइज बहुत छोटा होता है। इसलिए ब्लीडिंग होने और मरीज के शरीर में खून चढ़ाने का खतरा लगभग न के बराबर होता है। 

कट का साइज छोटा होने की वजह से दर्द कम होता है जिसके कारण मरीज को लंबे समय तक पेन किलर लेने की जरुरत पड़ती है। इस सर्जरी के दौरान इंटरनल ओर्गंस का बाहरी दूषित पदार्थों के साथ संपर्क बहुत कम होता है। इसलिए सर्जरी के बाद इंफेक्शन होने का खतरा भी कम होता है। सबसे खास बात यह है की इस सर्जरी की प्रक्रिया 30-40 मिनट के अंदर पूरी हो जाती है। इसलिए मरीज को ज्यादा समय तक हॉस्पिटल में रुकने की जरुरत नहीं पड़ती है। सामान्य तौर पर मरीज को सर्जरी के दिन या फिर उसके अगले दिन डिस्चार्ज कर दिया जाता है। एक से दो दिन के बाद मरीज अपने दैनिक जीवन के कामों को फिर से शुरू करने के लिए पूरी तरह से फिट हो जाते हैं।

आगे पढ़ें

डिस्क्लेमर: यह ब्लॉग सामान्य जानकारी के लिए लिखा गया है| अगर आप किसी बीमारी से ग्रसित हैं तो कृपया डॉक्टर से परामर्श जरूर लें और डॉक्टर के सुझावों के आधार पर ही कोई निर्णय लें|

Author

Updated on 29th August 2023