जांच
आमतौर पर यूटेराइन फाइब्रॉयड्स के कुछ खास लक्षण नजर नहीं आते हैं। इसके मुख्य लक्षणों में दर्द और ब्लीडिंग होना शामिल है जो कि गर्भाशय से जुड़ी दूसरी भी अन्य बीमारियों के लक्षण हो सकते हैं। ऐसे में यूटेराइन फाइब्रॉयड्स की उपस्थिति, उसकी संख्या और गंभीरता की पुष्टि करने के लिए स्त्री रोग विशेषज्ञ मरीज की जांच करते हैं। सबसे पहले डॉक्टर मरीज का शारीरिक परीक्षण करते हैं और लक्षणों से संबंधित कुछ प्रश्न पूछते हैं। उसके बाद, इस बीमारी को गहराई से समझने के लिए कुछ जांच करने का सुझाव दे सकते हैं जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:-
01. अल्ट्रासाउंड अल्ट्रासाउंड से यूटेराइन फाइब्रॉयड्स का पता लगाया जाता है। जांच की इस प्रक्रिया की मदद से सबम्यूकोसल फाइब्रॉयड्स का पता लगाने के साथ-साथ उन फाइब्रॉयड्स का भी पता लगाया जा सकता है जो गर्भाशय ग्रीवा में मौजूद होते हैं।
02. एमआरआई स्कैन एमआरआई स्कैन के जरिए डॉक्टर फाइब्रॉयड्स के आकार, संख्या और उनके सटीक लोकेशन का पता लगाते हैं। जांच की यह प्रक्रिया बहुत आवश्यक होती है।
03. डायग्नोस्टिक लेप्रोस्कोपी इस प्रक्रिया के दौरान डॉक्टर मरीज के पेट में लेप्रोस्कोप नामक उपकरण डालते हैं जिससे गर्भास्य के बाहर मौजूद फाइब्रॉयड्स का पता लगाया जाता है। स्थिति को ध्यान में रखते हुए डायग्नोस्टिक लेप्रोस्कोपी के बाद डॉक्टर बायोप्सी का भी सुझाव दे सकते हैं।
04. हिस्टेरेस्कोपी इस प्रक्रिया के दौरान हिस्टेरोस्कोप नामक उपकरण को मरीज के गर्भाशय में डाला जाता है। हिस्टेरोस्कोप की एक छोर पर कैमरा लगा होता है जिसकी मदद से डॉक्टर गर्भाशय में मौजूद फाइब्रॉयड्स की पुष्टि करते हैं। आवश्यकता होने पर हिस्टेरोस्कोपी के बाद बायोप्सी भी की जा सकती है।
05. ब्लड टेस्ट डॉक्टर मरीज का ब्लड टेस्ट भी कर सकते हैं ताकि दूसरी बीमारी की उपस्थिति की पुष्टि की जा सके। कई बार ब्लड टेस्ट के साथ-साथ कम्प्लीट ब्लड काउंट टेस्ट (CBC Test) भी किया जा सकता है।
इन सभी जांचों के परिणामों के आधार पर डॉक्टर सर्जरी की प्रक्रिया को शुरू करते हैं।
सर्जरी
- गर्भाशय की रसौली का इलाज करने के लिए लेप्रोस्कोपिक तकनीक का इस्तेमाल करते हैं| इसके लिए दो किस्म की सर्जरी में से किसी एक का इस्तेमाल किया जा सकता है
१. हिस्टेरेक्टॉमी २. म्योमेक्टोमी