गर्भपात क्या है?
गर्भपात या अबॉर्शन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें अनचाहे गर्भ का समापन किया जाता है। भारत में यह प्रक्रिया एक वैध प्रक्रिया है, जिसमें वैवाहिक और गैर-वैवाहिक दोनों ही महिलाएं इस प्रक्रिया को करवा सकती हैं, लेकिन गर्भावस्था को 20 सप्ताह से अधिक का समय नहीं होना चाहिए। निम्नलिखित स्थिति में एक स्त्री रोग विशेषज्ञ गर्भपात करने का निर्णय लेती हैं –
- मां के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य पर इस भ्रूण का नकारात्मक प्रभाव पड़े।
- भ्रूण में कोई अनुवांशिक रोग हो।
- गर्भनिरोधक दवाओं का कारगर साबित न होना।
- यदि महिला की गर्भावस्था की स्थिति किसी यौन यौन शोषण के कारण हो, तो 24 सप्ताह तक के गर्भ का समापन ऑपरेशन से संभव और वैध होता है।
वर्तमान समय में गर्भपात प्रक्रिया में आधुनिक तकनीक का प्रयोग होता है, जिसमें सुरक्षा अधिक और जोखिम कम होता है। इस प्रक्रिया से आपके भविष्य में गर्भधारण करने की संभावना पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। लेकिन इस प्रक्रिया को एक प्रशिक्षित विशेषज्ञ के द्वारा लाइसेंस प्राप्त क्लीनिकों में किया जाना चाहिए। यह सभी बातें एमटीपी एक्ट 1971 के तहत आती है।
यदि आप गर्भपात जैसी संवेदनशील प्रक्रिया को असुरक्षित जगह पर किसी ऐसे चिकित्सक से करवाते हैं, जो इसके लिए प्रशिक्षित नहीं है, तो अबॉर्शन के दौरान बहुत सारी जटिलताएं उत्पन्न हो सकती है। इसके कारण अधूरा गर्भपात, संक्रमण और कुछ मामलों में मृत्यु की भी संभावना बन जाती है।
जल्द गर्भपात का निर्णय लेने का महत्व
यदि आपने गर्भधारण कर लिया है और आप इस संतान को जन्म नहीं देना चाहती हैं, तो हम आपको अबॉर्शन प्रक्रिया में देरी करने की सलाह बिल्कुल नहीं देते हैं। जितनी जल्दी आप अबॉर्शन की प्रक्रिया को करवाती हैं, उतना ही लाभ आपको होगा।
इसके साथ साथ यदि निर्णय लेने में ज्यादा देर हो जाती है, तो कुछ कानूनी दांव पेंच भी आपको परेशान कर सकते हैं। भारतीय दंड संहिता 1860 के अनुसार, गर्भपात तब किया जाता है, जब गर्भ धारण किए हुए 20 सप्ताह से कम का समय व्यतीत होता है। कुछ विशेष मामले में यह समय अवधि 24 सप्ताह तक बढ़ सकती है जैसे – महिला के साथ यौन शोषण, महिला को किसी भी प्रकार शारीरिक समस्या होना या फिर महिला की उम्र 18 वर्ष से कम होना।
यदि आप गर्भपात से संबंधित कानूनी दांवपेच समझना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।
सर्जिकल अबॉर्शन से पहले नैदानिक परीक्षण
अल्ट्रासाउंड: अल्ट्रासाउंड एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें आवाज-आधारित तकनीक का प्रयोग होता है। इस आधुनिक तकनीक के माध्यम से शरीर के अंदरूनी अंगों के चित्र को बनाया जाता है। गर्भ धारण करने की अवधि के आधार पर डॉक्टर अलग अलग प्रकार के अल्ट्रासाउंड का सुझाव दे सकते हैं जैसे:-
- गर्भावस्था के 6-8 सप्ताह में अल्ट्रासाउंड स्कैन – इस स्थिति में ट्रांसवेजाइनल अल्ट्रासाउंड (Transvaginal Ultrasound) का सुझाव दिया जाता है। परीक्षण में भ्रूण की प्रगति के बारे पता चल सकता है। यह गर्भाशय और उसके आस-पास की जगह के आंतरिक अंगों को बेहतर ढंग से देखने में मदद करता है।
- गर्भावस्था के 2 माह के बाद अल्ट्रासाउंड स्कैन (Abdominal Ultrasound) – इस परीक्षण में श्रोणि और पेट की जांच की जाती है। परीक्षण के दौरान डॉक्टर उपकरण पर एक जेल लगाते हैं, जिससे परिणाम सटीक आता है।
सर्जिकल अबॉर्शन के जोखिम और जटिलताएं
असुरक्षित अबॉर्शन से पहले जोखिम और जटिलताएं
यदि गर्भपात लाइसेंस प्राप्त क्लीनिकों में नहीं होती है या फिर इसे अप्रशिक्षित चिकित्सक करते हैं, तो यह एक अवैध अबॉर्शन कहलाता है।
भारत में हर वर्ष लगभग 64 लाख महिलाएं अबॉर्शन कराती हैं, लेकिन वैध तरीके और लाइसेंस प्राप्त क्लीनिकों में यह संख्या बहुत ज्यादा कम हो जाती है। यहां आपको एक बात का खास ख्याल रखना होगा कि अवैध गर्भपात के बहुत सारे जोखिम और जटिलताएं होती हैं जैसे –
- संक्रमण
- अधूरा गर्भपात
- गंभीर मामलों में गर्भ धारण करने की क्षमता को नुकसान
- अबॉर्शन के दौरान मृत्यु
मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार रोजाना 10 लाख से भी ज्यादा महिलाओं की मृत्यु अवैध एवं असुरक्षित गर्भपात से होती है। यह संख्या इतनी विशाल है कि विवाह के बाद मृत्यु का यह तीसरा प्रमुख कारण है। इसी कारणवश हम प्रशिक्षित, अनुभवी और योग्य चिकित्सक से लाइसेंस प्राप्त क्लीनिक में गर्भ समाप्त करने का सुझाव देते हैं।
18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों का अबॉर्शन
यदि भारत में सुरक्षित और वैध तरीके से गर्भपात करने का निर्णय लिया जाता है, तो यह हर उम्र की महिलाओं के लिए लाभकारी साबित हो सकता है।
यदि किसी लड़की की उम्र 18 से कम है और वह गर्भपात करवाना चाहती है, तो प्रक्रिया को करने के लिए उनके घर परिवार में से किसी की सहमति की आवश्यकता होती है। सहमति मिलने पर किसी भी लाइसेंस प्राप्त क्लीनिक में लाइसेंस प्राप्त स्त्री रोग विशेषज्ञ के द्वारा गर्भपात कराया जा सकता है।
यहां एक बात का खास ध्यान रखने की आवश्यकता है। 18 वर्ष से कम की लड़कियों के साथ यौन संबंध स्थापित (सहमति या गैर सहमति) करना कानूनी अपराध है और भारत में इस स्थिति को बलात्कार कहा जाता है। इस मामले में पुलिस लड़की और उनके परिवार से कुछ प्रश्न पूछ सकते हैं और फिर स्त्री रोग विशेषज्ञ अबॉर्शन की प्रक्रिया को करते हैं।
गर्भपात का संबंध यौन शोषण से भी होता है। कानून ऐसे मामलों को विशेष मामलों की सूची में रखता है और जो भी महिलाएं यौन शोषण का सामना करती हैं वह सभी महिलाएं सुरक्षित गर्भपात करवा सकती हैं। इस प्रक्रिया को करने के लिए कम से कम 2 डॉक्टर की अनुमति चाहिए होती है।
गर्भपात के प्रकार
गर्भपात के प्रकार का चुनाव दो मुख्य कारकों के आधार पर किया जाता है –
- गर्भावस्था का प्रकार – साधारण गर्भधारण/ एक्टोपिक गर्भावस्था / मोलर गर्भावस्था
- गर्भावस्था का समय – गर्भावस्था को कितना समय व्यतीत हुआ है।
इसके साथ साथ कुछ अन्य कारक भी हैं, जो गर्भावस्था के प्रकार पर निर्णय लेने में आपकी सहायता कर सकते हैं जैसे – अबॉर्शन की आवश्यकता, रोगी का स्वास्थ्य, जोखिम कारक, और व्यक्तिगत पसंद। इन सभी कारकों के आधार पर गर्भपात के लिए उपयुक्त प्रक्रिया का चुनाव किया जाता है।
- साधारण गर्भावस्था के शुरुआती चरण: मेडिकल गर्भपात
- 9 सप्ताह से अधिक समय के बाद साधारण गर्भावस्था: डाइलेशन और क्यूरेटेज (सर्जिकल गर्भपात)
- एक्टोपिक गर्भावस्था: दूरबीन से अबॉर्शन (लेप्रोस्कोपिक ऑपरेशन)
- मोलर गर्भावस्था:डाइलेशन और क्यूरेटेज(सर्जिकल गर्भपात)
गर्भपात का मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव
कई मेडिकल संस्थानों के अनुसार अबॉर्शन के कारण कई मानसिक समस्याएं उत्पन्न हो सकते हैं जैसे – तनाव, घबराहट, अवसाद, क्रोध, शर्म, अकेलापन, आत्मसम्मान को ठेस, इत्यादि।
गर्भपात के बाद अनिद्रा या अन्य नींद संबंधी विकार, खाने के विकार या आत्महत्या के विचार भी आ सकते हैं। कुछ महिलाएं, जिन्हें गर्भपात कराने के लिए मजबूर किया गया हो, उनका मानसिक स्वास्थ्य सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। अबॉर्शन का कारण कोई भी हो, इस प्रक्रिया से गुजरने वाले हर महिला को मानसिक समस्या का सामना करना पड़ता है।
कारण कोई भी हो हमें उन लोगों को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। इस स्थिति का सबसे अच्छा इलाज है – समय। यदि वह सभी महिलाएं स्वयं को समय दें, तो वह इस स्थिति से स्वयं बाहर निकल सकती हैं। इस स्थिति के बेहतर निवारण के लिए परिवार के साथ समय व्यतीत करना लाभकारी साबित हो सकता है। कुछ गंभीर मामलों में काउंसलर की आवश्यकता पड़ सकती है। इस स्थिति में मित्रों और परिवार का सहयोग भी एक बहुत महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
अबॉर्शन के लिए तैयारी
अबॉर्शन के लिए तैयारी कैसे करें?
हालांकि, संतान का जन्म हर व्यक्ति के जीवन का सबसे भावनात्मक मोड़ होता है। संतान प्राप्ति के बाद माता पिता का जीवन पूर्ण रूप से बदल जाता है। माता पिता बनते ही लोगों के जीवन में जिम्मेदारियां बढ़ जाती है। यदि आपको लगता है कि आप अभी तक इस जिम्मेदारी के लिए तैयार नहीं हैं या गर्भावस्था शारीरिक/मानसिक या भावनात्मक रूप से आपके लिए कष्टदायक हो सकती है, तो आपको इस स्थिति के बारे में दो बार ज़रूर विचार करना चाहिए। आप अपने परिवार, भरोसेमंद साथी या ऐसे मित्र से चर्चा करें जिन पर आपको पूरा भरोसा है। स्वयं निर्णय लें, क्योंकि गर्भपात जैसी गंभीर प्रक्रिया को करने के लिए आपकी सहमति आवश्यक है।
यदि आपने निर्णय ले लिया है, तो प्रक्रिया से पहले कुछ तैयारी ज़रूर कर लेना –
- अपनी उम्र का प्रमाण पत्र साथ रखें
- वर्तमान में चल रही दवाओं के बारे में अपने डॉक्टर को ज़रूर बताएं। आपका डॉक्टर कुछ दवाओं को बंद करने की सलाह भी दे सकते हैं, खास तौर पर उन दवाओं को जिससे आपका रक्त पतला होता है।
- ऑपरेशन वाले क्षेत्र के आस पास ब्लेड का प्रयोग न करें। एक साधारण सा चीरा आपके लिए समस्या खड़ी कर सकता है।
- प्रक्रिया में बेहोशी की दवा का प्रयोग होना है, इसलिए प्रक्रिया से 4 से 6 घंटे पहले तक आपको कुछ भी खाने या पीने की सलाह नहीं दी जाती है।
- प्रक्रिया के बाद आपको हल्के या कपास के कपड़े पहनने होते हैं, इसलिए क्लीनिक में जाते समय अपने साथ इसे ज़रूर रखें।
- अपने साथ सैनिटरी पैड का एक पैकेट अवश्य ले जाएं।
8-9 सप्ताह के बाद की गर्भावस्था का अबॉर्शन
8-9 सप्ताह की गर्भावस्था का अबॉर्शन
यदि गर्भधारण किए हुए 8-9 सप्ताह से अधिक का समय बीत गया है, तो सर्जिकल अबॉर्शन की आवश्यकता पड़ सकती है। अबॉर्शन के लिए सबसे सामान्य प्रक्रिया डाइलेशन और क्यूरेटेज है, जिसमें ब्लेड का प्रयोग नहीं होता है और न ही प्रक्रिया के दौरान आपको दर्द होता है। कई मामलों में उसी दिन अस्पताल से छुट्टी भी मिल जाती है।
इस प्रक्रिया में गर्भाशय ग्रीवा का फैलाने के लिए डॉक्टर दवा देते हैं। यह गर्भ के समापन में एक अहम भूमिका निभाता है। इस प्रक्रिया में 30 से 40 मिनट तक का समय लग सकता है। जैसे ही गर्भाशय ग्रीवा फैल जाती है, सर्जन एक उपकरण की सहायता से बच्चेदानी के अंदर से गर्भावस्था की सभी ऊतकों को निकाल लेते हैं। प्रक्रिया के कुछ घंटों के बाद गर्भाशय ग्रीवा अपनी जगह पर वापस आ जाती है। इस प्रक्रिया में कोई भी कट या टांके नहीं लगाए जाते हैं।
सर्जरी के दौरान क्या होता है?
अबॉर्शन की पूरी प्रक्रिया बेहोशी की दवा के प्रभाव में होती है और यही कारण है कि प्रक्रिया के दौरान कोई भी दर्द नहीं होता है। इस प्रक्रिया को पूर्ण होने में 45 से 60 मिनट तक का समय लग सकता है। यह एक सुरक्षित प्रक्रिया है और कुछ मामलों में डॉक्टर आपको तुरंत डिस्चार्ज भी कर सकते हैं।
गर्भपात के बाद की देखभाल
- आराम: आपके शरीर को रिकवर होने में कुछ दिन का समय लग सकता है, इसलिए अपने सभी कामों से छुट्टी लेकर आराम करें। जितना हो सके उतना पानी पीएं और ऐसे प्रकार के भोजन खाएं जिससे आपको संतुष्टि मिले। वही काम करें जिससे आपको आनंद मिले और अपने मित्रों और परिवार जन से बात करें, जिससे आप बेहतर महसूस करेंगे।
- दवाएं: डॉक्टर के द्वारा दी गई दवाएं समय पर खाएं। इससे संक्रमण को खत्म करने और मासिक धर्म चक्र को फिर से शुरू करने में सहायता मिलती है।
- परामर्श सत्र: प्रक्रिया के बाद परामर्श एक अहम भूमिका निभाता है। यह आपको पूर्ण रूप से दुरुस्त होने में मदद कर सकता है।
- टैम्पोन और सैनिटरी पैड – अबॉर्शन के कुछ दिनों तक टैम्पोन का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। इसके बदले में मुलायम सैनिटरी पैड का प्रयोग करें। यदि आप टैम्पोन का प्रयोग करते हैं, तो इससे रक्त हानि की संभावना बढ़ जाती है।
- अबॉर्शन के 4 सप्ताह तक यौन संबंध बनाने से बचें। यौन क्रियाओं को फिर से शुरू करने से पहले स्वस्थ हो जाएं।
- उन गतिविधियों को करने से बचें जिसमें आपके शरीर को अधिक जोर लगाना पड़ता है।
अबॉर्शन के लिए स्वास्थ्य बीमा कवरेज
स्वास्थ्य बीमा का कवरेज अबॉर्शन के कारण पर निर्भर करता है। यदि डॉक्टर ने किसी भी स्वास्थ्य समस्या को दूर करने के लिए गर्भपात का सुझाव दिया है, तो बीमा कंपनी प्रक्रिया को करवाने के लिए कवरेज प्रदान करती है। लेकिन यदि आपने गर्भपात का निर्णय स्वयं लिया है, तो स्वास्थ्य बीमा कवरेज आपको नहीं मिलेगा।
कुछ स्वास्थ्य समस्याएं हैं, जिनके कारण डॉक्टर गर्भपात जैसे संवेदनशील प्रक्रिया का सुझाव देते हैं जैसे:-
- मां के स्वास्थ्य को हानि।
- बार-बार रक्तचाप और शुगर के स्तर का बढ़ना।
- भ्रूण में समस्या (दिल की समस्या या कोई अन्य गंभीर समस्या)
- कुछ प्रकार की गर्भावस्था जैसे – एक्टोपिक और मोलर गर्भावस्था
- अनपेक्षित गर्भपात
अबॉर्शन के बाद रिकवरी
- मेडिकल गर्भपात में ज्यादा समय लगता है और बहुत ज्यादा दर्द हो सकता है। इस प्रक्रिया के दौरान पेट में ऐंठन और दर्द के साथ रक्त हानि होती है। गर्भपात की प्रक्रिया को पूर्ण होने में 7 से 10 दिन का समय लगता है। प्रक्रिया के बाद 15 दिनों के अंदर डॉक्टर अल्ट्रासाउंड का सुझाव देते हैं। इससे गर्भावस्था सुरक्षित रूप से समाप्त होने की पुष्टि हो जाती है।
- वहीं दूसरी तरफ सर्जिकल गर्भपात में कम समय लगता है और दर्द भी कम होता है। इस प्रक्रिया में डॉक्टर ऑपरेशन के द्वारा गर्भाशय से भ्रूण को निकाल देते हैं। इस प्रक्रिया में रक्त हानि 3 से 4 दिनों के भीतर समाप्त हो जाती है। अबॉर्शन के पहले सप्ताह के बीत जाने के बाद आप अपना काम फिर से शुरू कर सकते हैं।
इस बात में पूर्ण सत्यता है कि हर व्यक्ति का शरीर अलग अलग होता है और हर स्थिति में अलग अलग प्रतिक्रिया करता है। रिकवरी का समय आपके काम करने के ऊपर भी निर्भर करता है। यदि आप डेस्क जॉब करते हैं, तो रिकवर होने में 1 से दो सप्ताह का समय लग सकता है और यदि आप ऐसा कोई कार्य करते हैं, जिसमें ज्यादा जोर लगाना पड़े, तो रिकवरी में थोड़ा अधिक समय लग सकता है। अलग अलग गर्भावस्था की स्थिति में भी रिकवरी के समय में भिन्नता हो सकती है।