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गुदा मार्ग में दरार आ जाने को फिशर कहते हैं। फिशर की वजह से मल त्याग के दौरान दर्द और ब्लीडिंग हो सकती है। गुदा मार्ग के आस-पास मौजूद टिश्यू की लाइनिंग में चोट लगने के कारण यह समस्या होती है। स्टूल कड़ा होने या फिर डायरिया की वजह से यह चोट लगती है। फिशर को अनुपचारित नहीं छोड़ना चाहिए। सही समय पर निदान नहीं किया गया तो एक्यूट फिशर क्रोनिक फिशर में बदल सकता है जो अधिक दर्दनाक रहता है। इसका इलाज न कराने पर कैंसर या इन्फेक्शन का खतरा हो सकता है।
निदान
एनल फिशर का निदान करने के लिए डॉक्टर फिजिकल टेस्ट करते हैं। रोगी का रेक्टल एग्जामिनेशन भी किया जा सकता है। डॉक्टर एनोस्कोप (Anoscope) को एनल कैनाल के अंदर डालकर विस्तार से देख सकते हैं।
सर्जरी
लेजर उपचार फिशर का इलाज के लिए एक न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रिया है। यह फिशर का इलाज के अन्य तरीकों के मुकाबले अधिक लोकप्रिय और आसान है। यह 30 मिनट की प्रक्रिया है इसके बाद रोगी को उसी दिन छुट्टी दे दी जाती है। कोई साइड-इफेक्ट और कोई दर्द नहीं होने के साथ, लेजर उपचार तेजी से ठीक होने में मदद करता है।
फिशर की लेजर प्रक्रिया के फायदों में शामिल हैं:
भारत में लोगों को पेट से सम्बंधित कई बीमारियाँ होती हैं, जिनमें कब्ज का नाम सुर्ख़ियों पर होता है। एनल फिशर होने का सबसे बड़ा कारण कब्ज है। हालांकि, और भी बहुत से कारण इस गंभीर समस्या के लिए जिम्मेदार हैं लेकिन, ज्यादातर मामले में एनल फिशर से पीड़ित रोगी को कब्ज होता है।
एनल फिशर का सबसे बड़ा इलाज खान-पान में सुधार करना है। लेकिन, अगर आपको एक बार फिशर हो गया है तो यह बार-बार हो सकता है और इसके लिए सर्जरी ही सबसे अच्छा विकल्प है।
अगर आपको ये लक्षण नजर आते हैं तो आपको एनल फिशर हो सकता है:
फिशर एक कट है जो एनल कैनाल की त्वचा में पाया जाता है। स्थान की पुष्टि करने के लिए और इसके संभावित कारणों को जानने के लिए डॉक्टर कुछ टेस्ट कर सकते हैं।
मल त्याग के दौरान स्फिंकटर मासपेशियों में दबाव पड़ता है जिसके कारण तेज दर्द होता है। यह माँसपेशियाँ संक्रमित भी हो सकती है जिसके कारण कई अन्य समस्याएं खड़ी हो सकती हैं।
खाना में फाइबर शामिल करके आप स्टूल को मुलायम बना सकते हैं। यह फिशर का इलाज करता है। इसके अलावा सिट्ज बाथ भी इसमें फायदेमंद है। सभी उपायों को करने के बाद भी अगर फिशर आठ हफ़्तों के भीतर ठीक नहीं होता है तो सर्जरी जरूरी है।
लेजर सर्जरी के बाद प्रभावित क्षेत्र या आस-पास के त्वचा में किसी भी प्रकार का निशान नहीं बनता है।
फिशर ठीक होने लगता है तो मल त्याग करते वक्त दर्द कम हो जाता है। एनल कैनाल में सूजन और ब्लीडिंग की शिकायत भी दूर हो जाती है।