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    Dr. Saloni Spandan Rajyaguru (4fb10gawZv)

    Dr. Saloni Spandan Rajya...

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    Dr. Manu Bharath

    MBBS, MS - ENT
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    Dr. Shilpa Shrivastava (LEiOfhPy1O)

    Dr. Shilpa Shrivastava

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    साइनस कैसे होता है?

    हमारे मस्तिष्क में बहुत सारे खोखले छेद या कैविटी होती हैं। ये छेद हमारे सिर को हल्का बनाए रखते हैं और सांस लेने में भी मदद करते हैं। अगर ये छेद न हों तो मनुष्य अपनी ही आवाज को नहीं सुन पाएगा। इन्हीं छेदों को साइनस कहा जाता है। जब इन्हीं छेदों या साइनस में कफ भर जाता है तो हमें सांस लेने में भी समस्या होने लगती है। इसी समस्या को साइनोसाइटिस (Sinusitis) कहा जाता है। ज़्यादातर लोग इसे साइनस के नाम से जानते हैं।

    किसी भी कारण से अगर नाक के छेदों में अगर रुकावट आ जाती है तो साइनोसाइटिस हो सकता है। इसके अलावा कई बार दिमाग के खोखले छेदों में बलगम भर जाता है, जिससे साइनस बंद हो जाते हैं। साथ ही, इन्फेक्शन के कारण साइनस की झिल्ली में सूजन आ जाती है। जिसकी वजह से सिर, माथे, गालों और ऊपर के जबड़े में दर्द होने लगता है।

    साइनोसाइटिस की बीमारी खराब लाइफस्टाइल की वजह से नहीं होती। लेकिन खासकर ऐसे लोग जो फील्ड जॉब में होते हैं या जो ज्यादा वक्त तक प्रदूषण भरे माहौल में रहते हैं। उन्हें साइनस होने का खतरा बाकी लोगों से कहीं ज्यादा होता है।

    साइनस किस प्रकार की बीमारी है?

    साइनस की समस्या ज्यादातर लोग में एलर्जी के रूप में सामने आती हैं क्योंकि इसकी वजह से उन्हें धूल, मिट्ठी, धुंआ इत्यादि की वजह से सांस लेने में परेशानी होती है। लेकिन, यह मात्र एलर्जी नहीं है बल्कि नाक से जुड़ी बीमारी है, जो मुख्य रूप से नाक की हड्डी के बढ़ने या तिरछी होने की वजह से होती है।

    टाइम्स ऑफ में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार भारत में नाक की यह समस्या काफी तेज़ी से फैल रही है और यह समस्या 5 में से 1 व्यक्ति में देखने को मिल रही है। ये आंकडे साइनस की स्थिति को बयां करने के लिए काफी हैं, लेकिन इसके बावजूद अधिकांश लोग इसके लक्षणों की पहचान नहीं कर पाते हैं और इसी कारण वे इससे परेशान रहते हैं।

    साइनस का ऑपरेशन किसे नहीं करवानी चाहिए?

    यदि आपको निम्न में से कोई भी समस्या महसूस हो रही है, तो डॉक्टर साइनसोटमी सर्जरी करने से मना कर सकते हैं –

    • फ्रंटल साइनस मौजूद न होना या फिर उसका कुछ हिस्सा बना हुआ न होना, जिसे एप्लास्टिक फ्रंटल साइनस कहा जाता है।
    • साइनस में मौजूद हड्डी में कोई विकृति होना या हड्डी का विभाजन होना
    • हड्डी में संक्रमण होने के कारण माथे में सूजन आना, जिससे पोट्स पफी ट्यूमर भी कहा जाता है।
    • खोपड़ी में कोई हड्डी बढ़ जाना या फिर ट्यूमर हो जाना, जिसे लार्ज ओस्टियोमस के नाम से जाना जाता है। 
    • फ्रंटल साइनस की तरफ के ऊतक क्षतिग्रस्त होना
    • पहले कभी सेरिब्रोस्पाइनल द्रव का रिसाव हुआ होना

    साइनस  के कारण होने वाली परेशानियाँ

    क्रोनिक और रीकरंट साइनोसाइटिस से ग्रस्त मरीजों को कुछ गंभीर जटिलताएं हो सकती हैं। विशेष रूप से जब वायरस या बैक्टीरिया आसपास के हिस्सों में फैल जाते हैं, तो उससे निम्न जटिलताएं विकसित हो सकती हैं –

    • कुछ समय के लिए बहरापन होना
    • कान में संक्रमण होना
    • तेज सिरदर्द
    • गर्दन में जकड़न
    • भ्रम या उलझन महसूस होना
    • बोलने, निगलने या सांस लेने में दिक्कत होना

    हालांकि, हर व्यक्ति की शारीरिक प्रकृति के अनुसार हर व्यक्ति को होने वाली जटिलताएं अलग हो सकती हैं।

    साइनोसाइटिस के जोखिम बढ़ाने वाले कारक

    साइनस का मुख्य कारण एलर्जी या संक्रमण है, जिससे साइन की अंदरूनी नाक की झिल्ली में सूजन आ जाती है और बलगम का स्राव रुक जाता है। बलगम रुकने के कारण उसे बैक्टीरिया या वारयस बढ़ने लगते हैं, जिनके कारण बलगम अधिक तेजी से बनने लगता है और सिरदर्द व बुखार जैसी समस्याएं  होने लगती हैं। हालांकि, कुछ अन्य कारण भी हैं, जिनसे साइनोसाइटिस के जोखिम के कारक हो सकता है:-

    सेप्टम टेढ़ा होना – नाक के बीच की सीधी दीवार को सेप्टम कहा जाता है, जो कार्टिलेज से बनी होती है। यदि सेप्टम एक तरफ झुका हुआ है, जिससे नाक का एक द्वार बंद का कम खुला हुआ है, तो यह भी साइनोसाइटिस का कारण बन सकता है।

    चर्बी बढ़ना – नाक के अंदर या नाक की हड्डी के हिस्से में चर्बी बनने से मार्ग में रुकावट होने लगती है और परिणामस्वरूप साइनस में बलगम जमा होने लगता है।

    दवाएं – बहुत-सी ऐसे दवाइयाँ होती हैं जिनके सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता(Immunity Power) कमजोर हो जाती हैं, जिन्हें इम्यूनोसप्रासांट्स कहा जाता है। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण साइनस में संक्रमण होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है।

    अन्य बीमारियां – रूमेटाइड आर्थराइटिस या डायबिटीज जैसे अन्य कई गंभीर बीमारी हैं, जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को (Immunity Power) को प्रभावित कर देते हैं। इन रोगों से ग्रसित मरीजों को भी साइनोसाइटिस हो सकता है।

    डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए –

    क्रोनिक साइनसाइटिस विकसित होने से पहले आपको कई बार एक्यूट साइनसाइटिस हो सकता है। बार-बार एक्यूट साइनसाइटिस होने के साथ इन स्थितियों में डॉक्टर को जरूर दिखाएं –

    • आपको एक्यूट साइनसाइटिस कई बार हो चुका है और इलाज करने पर भी ठीक नहीं हो रहा है।
    • साइनसाइटिस के लक्षण सात दिन से ज्यादा चल रहे हों।
    • डॉक्टर को दिखाने के बाद भी लक्षणों में सुधार नहीं आता है।

    नीचे बताए गए लक्षण अगर आप मससूस करते हैं तो डॉक्टर से तुरंत सलाह लें। यह लक्षण गंभीर संक्रमण के संकेत हो सकते हैं –

    • तेज बुखार
    • आखों के आसपास त्वचा का लाल पड़ जाना और सूजन
    • सिर में बहुत अधिक दर्द महूसस करना और दवा लेने पर भी ठीक न होना
    • लगातार उलझन महसूस करना
    • एक चीज दो बार दिखाई देना या देखने में अन्य परेशानी
    • गर्दन में अकड़न

    साइनस के ऑपरेशन (साइनसोटमी) से पहले की तैयारी कैसे करें?

    साइनसोटमी सर्जरी करवाने से पहले आपको निम्न तैयारियां करने की आवश्यकता पड़ सकती है –

    • डॉक्टर आपकी स्वास्थ्य संबंधी पिछली जानकारी लेंगे और साथ ही आपका शारीरिक परीक्षण करेंगे, जिनकी मदद से उन्हें स्वास्थ्य संबंधी काफी जानकारी प्राप्त हो जाती है। साथ ही आपको कुछ विशेष टेस्ट करवाने के लिए भी कहा जा सकता है, जैसे सीटी स्कैन, एमआरआई स्कैन, छाती का एक्स रे और इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम आदि। परीक्षण के दौरान आपको कुछ प्रकार के ब्लड टेस्ट करवाने की सलाह भी दी जा सकती है।
    • यदि आपने हाल में कोई दवा खाई थी या फिर वर्तमान में भी कोई दवा का सेवन कर रहे हैं, तो उस बारे में डॉक्टर को पूरी जानकारी दें। इसके अलावा यदि आप कोई हर्बल उत्पाद, विटामिन, मिनरल या अन्य कोई सप्लीमेंट ले रहे हैं तो डॉक्टर को इस बारे में बता दें।
    • यदि आप रक्त को पतला करने वाली दवाएं लेते हैं, जैसे एस्पिरिन या आइबूप्रोफेन आदि को डॉक्टर उन्हें कुछ समय तक न लेने की सलाह दे सकते हैं। क्योंकि रक्त पतला होने पर सर्जरी के दौरान अधिक रक्तस्राव होने का खतरा रहता है।
    • सर्जरी शुरू करने से पहले डॉक्टर आपको एंटीबायोटिक व अन्य कुछ प्रकार की दवाएं दे सकते हैं।
    • यदि आपको हाल ही में संक्रमण हुआ है या अब भी संक्रमण के लक्षण महसूस हो रहे हैं, तो डॉक्टर को इस बारे में बता दें। ऐसा इसलिए क्योंकि संक्रमण के मामलों में सर्जरी को कुछ दिन के लिए टाला जा सकता है।
    • आपको सर्जरी करवाने के लिए खाली पेट अस्पताल आने की सलाह दी जाती है। खाली पेट रखने के लिए आपको सर्जरी वाले दिन से रात के बाद कुछ भी न खाने की सलाह दी जा सकती है। यदि आप किसी कारण से भूखे नहीं रह सकते हैं, तो डॉक्टर को इस बारे में बता दें।
    • सर्जरी शुरू होने से एक या दो घंटे पहले आपको एक विशेष दवा दी जाती है, जिसको स्प्रे की मदद से नाक में डाला जाता है।
    • सर्जरी से तीन हफ्ते पहले ही डॉक्टर आपको धूम्रपानशराब का सेवन न करने की सलाह दे सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि सिगरेट व शराब आदि पीने से सर्जरी के बाद स्वस्थ होने की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है और साथ ही अन्य स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएं भी विकसित हो जाती हैं। 
    • अपने साथ किसी मित्र या सगे संबंधी को लाने की सलाह दी जाती है, ताकि सर्जरी के बाद वे आपको घर ले जा सकें।
    • सर्जरी से पहले आपको एक सहमति पत्र दिया जाएगा, जिस पर हस्ताक्षर करके आप सर्जन को सर्जरी करने की अनुमति दे देते हैं।

     

    साइनस के ऑपरेशन के बाद इन बातों का विशेष ध्यान रखें 

    साइनसोटमी के बाद की तैयारी

    साइनस की सर्जरी के बाद आपको घर पर निम्न तरीकों से अपनी देखभाल करने की सलाह दी जाती है –

    दवाएं –

    • सर्जरी के बाद डॉक्टर कम से कम पांच दिनों के लिए आपको एंटीबायोटिक दवाएं देंगे, जो बैक्टीरियल इन्फेक्शन से बचाती हैं।
    • दर्द को कम करने के लिए भी आपको पेन-किलर दवाएं दी जा सकती हैं।
    • सर्जरी के बाद आपको 7 से 10 दिनों तक ब्लड थिनर दवाएं (जैसे एस्पिरिन) न लेने की सलाह दी जाती है।
    • डॉक्टर आपको रोजाना दो बार अपनी नाक धोने की सलाह देते हैं। डॉक्टर नाक धोने का सही तरीका भी आपको सिखा सकते हैं।

    शारीरिक गतिविधियां –

    • सर्जरी के बाद कम से कम दस दिनों तक आपको कोई भी भारी वस्तु उठाने से मना किया जाता है।
    • साथ ही आगे की ओर झुकना, जोर लगाना या अधिक मेहनत वाली कोई शारीरिक गतिविधि करने से भी मना किया जाता है।
    • डॉक्टर आपको छींक या खांसी को रोकने की बजाय मुंह से छींकने व खांसने का सुझाव देते हैं।
    • आपको नाक में उंगली या अन्य कोई वस्तु डालने से भी मना किया जाता है।

    यात्राएं –

    • आपको सर्जरी के बाद तीन से पांच दिनों तक कोई भी यात्रा करने से मना किया जाता है। हालांकि, यदि आपको आपात स्थिति में कहीं जाना है, तो डॉक्टर से इस बारे में बात कर लेनी चाहिए।

    यदि आपको सर्जरी के बाद निम्न में से कोई भी लक्षण महसूस हो रहा है, तो डॉक्टर से इस बारे में बात कर लेनी चाहिए –

    • बुखार
    • दृष्टि में बदलाव
    • उल्टी और मतली
    • आंखों में सूजन
    • गर्दन में अकड़न
    • गंभीर सिरदर्द
    • नाक से खून आना

    साइनस का ऑपरेशन से होने वाली जटिलताएं 

    साइनसोटमी से कुछ जोखिम व जटिलताएं हो सकती हैं, जैसे –

    • रक्तस्राव होना
    • सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड लीक होना
    • खून चढ़ाने की जरूरत पड़ना
    • सूंघने की शक्ति कम होना
    • एनेस्थीसिया से एलर्जी होना
    • दृष्टि संबंधी समस्याएं
    • आंख व होठों के पास सूजन और नील पड़ना

    साइनस की रोकथाम कैसे करें?

    साइनस को पूरी तरह से रोकथाम करना संभव नहीं है, इसलिए साइनस से पूरी तरह से छुटकारा पाने के लिए साइनसाइटिस सर्जरी करवाना ही सबसे बेहतरीन उपचार है| हालांकि, जिन लोगों को साइनोसाइटिस होने का खतरा अधिक रहता है, वे निम्न तरीकों से इसके जोखिम कारकों को कम कर सकते हैं –

    • यदि आपको किसी खादय पदार्थ से एलर्जी  हैं, तो जितना हो सके इनके सेवन करने से बचें
    • यदि आप धूम्रपान करते हैं, तो उसे तुरंत छोड़ दें और धूम्रपान कर रहे लोगों के संपर्क में न आएं
    • बार-बार मुंह, नाक या आंखों को न छुएं और छूने से पहले और चुने के बाद हाथों को अच्छे से धो लें
    • गाड़ियों के धुएं और गैस आदि के संपर्क में आने से बचें
    • जिन लोगों को जुकाम या फ्लू है, उन्हें नियमित रूप से अपनी नाक साफ करते रहना चाहिए ताकि अंदर  बलगम जमा न हो पाए

    क्या साइनसाइटिस की सर्जरी में बीमा कवर मिलता है?

    यदि आपको साइनस के कारण नाक में सूजन के अलावा सांस लेने में तकलीफ और बार-बार बलगम बनने की समस्या होती है, तो ऐसे में साइनसाइटिस सर्जरी करवाना बहुत जरूरी हो जाता है| क्योंकि साइनस एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या हो सकती है। नाक के दर्द और परेशान करने वाले लक्षणों से छुटकारा पाने के लिए  साइनसाइटिस सर्जरी सबसे सुरक्षित और उपयुक्त इलाज  है। भारत में कई स्वास्थ्य बीमा कंपनियां साइनसाइटिस की सर्जरी को बीमा के अंतर्गत कवर करती हैं। हालांकि, ऐसी संभावना है कि स्वास्थ्य बीमा कवरेज एक पॉलिसी से दूसरी पॉलिसी से अलग हो सकती है। यदि आप साइनसाइटिस की सर्जरी करवाने के बारे में सोच रहें हैं तो आपको इसके उपचार के लागत के भुगतान के लिए बीमा कवरेज मिलता  हैं। कुछ बीमा कंपनियाँ जो साइनसाइटिस उपचार को कवर कर सकते हैं, जो इस प्रकार हैं:

    • स्टार हेल्थ इंश्योरेंस
    • न्यू इंडिया हेल्थ इंश्योरेंस
    • बजाज एलियांज
    • रेलिगेयर हेल्थ इंश्योरेंस
    • आईसीआईसीआई लोम्बार्ड

    साइनस के लक्षण

    • सिर में दर्द और भारीपन
    • आवाज बदल जाना
    • बुखार और बेचैनी
    • आंखों के ठीक ऊपर दर्द
    • दांतों में दर्द
    • सूंघने में समस्या
    • जीभ से स्वाद लेने में समस्या
    • तेजी से बाल सफेद होना
    • नाक से पीला लिक्विड गिरना

     

     

     

     

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    साइनस के प्रकार

    • तीव्र साइनस संक्रमण
    • कम तीव्र साइनस संक्रमण
    • क्रॉनिक साइनस संक्रमण
    • रीकरंट साइनसाइटिस

    प्रिस्टीन केयर क्यों चुनें?

    • सभी डायग्नोस्टिक टेस्ट पर 30% छूट
    • गोपनीय परामर्श उपलब्ध
    • डीलक्स रूम की सुविधा
    • सर्जरी के बाद फ्री फॉलो-अप्स
    • 100% इंश्योरेंस क्लेम

    इंश्योरेंस कवर

    • कोई एडवांस पेमेंट नहीं
    • सभी बीमा कवर किए जाते हैं’
    • बीमा अधिकारियों के पीछे भागने की जरूरत नहीं
    • प्रिस्टीन टीम अस्पताल से जुड़े सभी पेपरवर्क करती है|

    साइनस का उपचार

    निदान 

    साइनस का निदान करने के लिए डॉक्टर अस्पताल बुलाकर आपके लक्षणों की करीब से जांच करते है। साथ ही आपसे इस बारे में भी पूछा जाता है कि आपको साइनस के लक्षण कब शुरू हुए हैं और हाल ही में आप किसी एलर्जिक पदार्थ के संपर्क में तो नहीं आए हैं। 

    इसके अलावा कुछ टेस्ट भी किए जा सकते हैं, जिनकी मदद से साइनोसाइटिस की पुष्टि करने में मदद मिलती है। इन टेस्टों में निम्न शामिल हैं –

    •  ब्लड टेस्ट
    •   नाक से बलगम लेकर उसकी जांच करना (कल्चर)
    • नाक या साइनस का एक्स-रे करना
    • सीटी स्कैन करना

    साइनस का सर्जिकल उपचार 

    साइनोसाइटिस का इलाज करने के लिए डॉक्टर आमतौर पर एंटीबायोटिक व नाक साफ करने वाली (डिकंजेस्टेंट) दवाएं  देते हैं। यदि किसी कारण से एंटीबायोटिक दवाओं से साइनसाइटिस ठीक नहीं हो पा रहा है या फिर स्थिति निरंतर गंभीर होती जा रही है, तो साइनसोटमी सर्जरी की जा सकती है।

    साइनस का उपचार साइनसोटमी सर्जरी प्रक्रिया से किया जाता है, जिसकी मदद से साइनस संबंधी विभिन्न प्रकार के रोगों का इलाज किया जाता है। साइनस नाक के दोनों तरफ बनी एक थैलीनुमा संरचना (कैविटी) है, जिसके भागों को निम्न के नाम से जाना जाता है –

    • फ्रंटल साइनस – आंखों के ऊपर, आईब्रो के पास
    • मैक्सिलरी साइनस – आंखों के नीचे
    • एथोमोइडल साइनस – आंखों के बीच में
    • स्फेनोइडल साइनस – आंखों के पीछे

    साइनसोटमी सर्जरी को दो अलग-अलग तरीकों से किया जा सकता है, जिन्हें एक्सटर्नल साइनसोटमी और एंडोस्कोपिक साइनसोटमी के नाम से जाना जाता है।

    इन सर्जिकल प्रक्रियाओं के करने के तरीकों के बारे में नीचे बताया गया है –

    एक्सटर्नल साइनसोटमी –

    इसे ओपन साइनसोटमी भी कहा जा सकता है। एक्सटर्नल साइनसोटमी को करने के लिए सर्जन कई अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल करते हैं, जैसे ट्रेफिनेशन और फ्रंटल साइनस ऑब्लिटेरेशन।

    ट्रेफिनेशन प्रोसीजर को निम्न तरीके से किया जाता है –

    • सर्जन आपकी भौं (आइब्रो) के ऊपर एक चीरा लगाएंगे|
    • इसके बाद विशेष उपकरणों की मदद से साइनस गुहा तक पहुंच कर उसमें छिद्र बनाया जाएगा और जमा हुए द्रव को निकाल दिया जाएगा।
    • इसके बाद छिद्र में से एक ट्यूब लगा दी जाती है, ताकि बचे हुए द्रव को सर्जरी के बाद निकाला जा सके।
    • ट्यूब लगने के बाद चीरे वाले स्थान को टांके लगाकर बंद कर दिया जाता है और ट्यूब को भी टांकों की मदद से स्थिर बना दिया जाता है। हालांकि, जब आपकी नाक के माध्यम से ही पर्याप्त रूप से साइनस के द्रव निकलने लग जाएं, तो ट्यूब को निकाल दिया जाता है।

    फ्रंटल साइनस ऑब्लिटेरेशन प्रोसीजर को निम्न तरीके से किया जाता है –

    • इसमें सर्जन सिर के सामने वाले हिस्से में एक चीरा लगाते हैं, जिसे कोरोनल चीरा कहा जाता है।
    • इसके बाद विशेष नुकिले उपकरणों की मदद से साइनस तक पहुंचा जाता है और साइनस के प्रभावित ऊतकों को काटकर निकाल दिया जाता है।
    • सर्जन नाक के माध्यम से ही साइनस में फंसे हुए द्रव को निकाल देते हैं और फिर उसकी जगह नरम ऊतक भर देते हैं।
    • साइनस के आस-पास की हड्डी में एक विशेष तार या प्लेट लगा दी जाती है और फिर टांकों की मदद से चीरे को बंद कर दिया जाता है।

    एंडोस्कोपिक साइनसोटमी –

    इस प्रक्रिया में नाक के अंदरूनी हिस्से की जांच करने के लिए एंडोस्कोप नामक उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है। इस सर्जरी को करने के लिए निम्न स्टेप किए जा सकते हैं –

    • सर्जन सबसे पहले नाक के माध्यम से साइनस में एंडोस्कोप उपकरण डालते हैं|
    • धीरे-धीरे करके एंडोस्कोप को क्षतिग्रस्त भाग तक पहुंचाया जाता है और फिर उस हिस्से (बढ़ी हुई हड्डी या क्षतिग्रस्त ऊतक) को काटकर हटा दिया जाता है।
    • साइनस में कैथेटर लगा दिया जाता है, ताकि साइनस में फंसने वाला द्रव समय-समय पर निकलने लगे।
    • कैथेटर की मदद से साइनस में एंटीबायोटिक दवाएं भी डाली जाती हैं, ताकि संक्रमण होने से बचाव किया जा सके
    • इस प्रक्रिया को पूरा होने में 30 से 90 मिनट का समय लगता है।
    • जब आप नाक से साइनस के द्रव निकालना शुरू कर देते हैं, तो कैथेटर को निकाल दिया जाता है।
    • सर्जरी के बाद आपको एक दिन के लिए अस्पताल में भर्ती रहना पड़ सकता है।
    Dr. Rahul Sharma (TEJFraQUZY)
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    सबसे अधिक पूछे जाने वाले सवाल

    साइनस की समस्या किस वजह से होती है?

    साइनस की समस्या मुख्य रूप से नाक संबंधी समस्या जैसे नाक की संरचना का सही न होना की वजह से होती है। इसके अलावा, यह समस्या एलर्जी, जेनेटिक, दांत संबंधी समस्याओं इत्यादि के कारण भी हो सकती है।

    साइनस से छुटकारा पाने का सबसे आसान तरीका क्या है?

    साइनस से छुटकारा पाने का सबसे आसान तरीका अपनी दिनचर्या में बदलाव करना है। इसके लिए अधिक मात्रा में पानी पीना, योगा करना, रोग-प्रतिरोधक क्षमता (immunity power) को बढ़ाने वाले खादय पदार्थों को डाइट में करना इत्यादि तरीके को अपनाया जा सकता है।

    साइनस की समस्या कितने समय तक रह सकती है?

    साइनस की शुरूआत ज़्यादातर जुखाम के लक्षणों जैसे नाक का बहना, चेहरे पर दर्द या खुजली होना इत्यादि तरह से होती है, जो कुछ समय के बाद गंभीर रूप ले लेती है। साइनस की समस्या मुख्य रूप से 1-3 हफ्तों तक रह सकती है।

    क्या साइनस का इलाज संभव है?

    जी हां, साइनस का इलाज संभव है। इसके लिए दवाई लेना, आयुर्वेदिक इलाज करना, एंटिबायोटिक दवाई का सेवन करना, साइनसाइटिस सर्जरी करना इत्यादि को अपनाया जा सकता है।

    क्या साइनस का असर आँखों पर पड़ सकता है?

    जी हां, साइनस का असर आँखों पर पड़ सकता है, जिसकी वजह से उनकी आँखों पर सूजन, आँखों का लाल होना, आँखों पर खुजली होना इत्यादि जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।