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हमारे मस्तिष्क में बहुत सारे खोखले छेद या कैविटी होती हैं। ये छेद हमारे सिर को हल्का बनाए रखते हैं और सांस लेने में भी मदद करते हैं। अगर ये छेद न हों तो मनुष्य अपनी ही आवाज को नहीं सुन पाएगा। इन्हीं छेदों को साइनस कहा जाता है। जब इन्हीं छेदों या साइनस में कफ भर जाता है तो हमें सांस लेने में भी समस्या होने लगती है। इसी समस्या को साइनोसाइटिस (Sinusitis) कहा जाता है। ज़्यादातर लोग इसे साइनस के नाम से जानते हैं।
किसी भी कारण से अगर नाक के छेदों में अगर रुकावट आ जाती है तो साइनोसाइटिस हो सकता है। इसके अलावा कई बार दिमाग के खोखले छेदों में बलगम भर जाता है, जिससे साइनस बंद हो जाते हैं। साथ ही, इन्फेक्शन के कारण साइनस की झिल्ली में सूजन आ जाती है। जिसकी वजह से सिर, माथे, गालों और ऊपर के जबड़े में दर्द होने लगता है।
साइनोसाइटिस की बीमारी खराब लाइफस्टाइल की वजह से नहीं होती। लेकिन खासकर ऐसे लोग जो फील्ड जॉब में होते हैं या जो ज्यादा वक्त तक प्रदूषण भरे माहौल में रहते हैं। उन्हें साइनस होने का खतरा बाकी लोगों से कहीं ज्यादा होता है।
साइनस की समस्या ज्यादातर लोग में एलर्जी के रूप में सामने आती हैं क्योंकि इसकी वजह से उन्हें धूल, मिट्ठी, धुंआ इत्यादि की वजह से सांस लेने में परेशानी होती है। लेकिन, यह मात्र एलर्जी नहीं है बल्कि नाक से जुड़ी बीमारी है, जो मुख्य रूप से नाक की हड्डी के बढ़ने या तिरछी होने की वजह से होती है।
टाइम्स ऑफ में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार भारत में नाक की यह समस्या काफी तेज़ी से फैल रही है और यह समस्या 5 में से 1 व्यक्ति में देखने को मिल रही है। ये आंकडे साइनस की स्थिति को बयां करने के लिए काफी हैं, लेकिन इसके बावजूद अधिकांश लोग इसके लक्षणों की पहचान नहीं कर पाते हैं और इसी कारण वे इससे परेशान रहते हैं।
यदि आपको निम्न में से कोई भी समस्या महसूस हो रही है, तो डॉक्टर साइनसोटमी सर्जरी करने से मना कर सकते हैं –
क्रोनिक और रीकरंट साइनोसाइटिस से ग्रस्त मरीजों को कुछ गंभीर जटिलताएं हो सकती हैं। विशेष रूप से जब वायरस या बैक्टीरिया आसपास के हिस्सों में फैल जाते हैं, तो उससे निम्न जटिलताएं विकसित हो सकती हैं –
हालांकि, हर व्यक्ति की शारीरिक प्रकृति के अनुसार हर व्यक्ति को होने वाली जटिलताएं अलग हो सकती हैं।
साइनस का मुख्य कारण एलर्जी या संक्रमण है, जिससे साइन की अंदरूनी नाक की झिल्ली में सूजन आ जाती है और बलगम का स्राव रुक जाता है। बलगम रुकने के कारण उसे बैक्टीरिया या वारयस बढ़ने लगते हैं, जिनके कारण बलगम अधिक तेजी से बनने लगता है और सिरदर्द व बुखार जैसी समस्याएं होने लगती हैं। हालांकि, कुछ अन्य कारण भी हैं, जिनसे साइनोसाइटिस के जोखिम के कारक हो सकता है:-
सेप्टम टेढ़ा होना – नाक के बीच की सीधी दीवार को सेप्टम कहा जाता है, जो कार्टिलेज से बनी होती है। यदि सेप्टम एक तरफ झुका हुआ है, जिससे नाक का एक द्वार बंद का कम खुला हुआ है, तो यह भी साइनोसाइटिस का कारण बन सकता है।
चर्बी बढ़ना – नाक के अंदर या नाक की हड्डी के हिस्से में चर्बी बनने से मार्ग में रुकावट होने लगती है और परिणामस्वरूप साइनस में बलगम जमा होने लगता है।
दवाएं – बहुत-सी ऐसे दवाइयाँ होती हैं जिनके सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता(Immunity Power) कमजोर हो जाती हैं, जिन्हें इम्यूनोसप्रासांट्स कहा जाता है। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण साइनस में संक्रमण होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है।
अन्य बीमारियां – रूमेटाइड आर्थराइटिस या डायबिटीज जैसे अन्य कई गंभीर बीमारी हैं, जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को (Immunity Power) को प्रभावित कर देते हैं। इन रोगों से ग्रसित मरीजों को भी साइनोसाइटिस हो सकता है।
क्रोनिक साइनसाइटिस विकसित होने से पहले आपको कई बार एक्यूट साइनसाइटिस हो सकता है। बार-बार एक्यूट साइनसाइटिस होने के साथ इन स्थितियों में डॉक्टर को जरूर दिखाएं –
नीचे बताए गए लक्षण अगर आप मससूस करते हैं तो डॉक्टर से तुरंत सलाह लें। यह लक्षण गंभीर संक्रमण के संकेत हो सकते हैं –
साइनसोटमी सर्जरी करवाने से पहले आपको निम्न तैयारियां करने की आवश्यकता पड़ सकती है –
साइनस की सर्जरी के बाद आपको घर पर निम्न तरीकों से अपनी देखभाल करने की सलाह दी जाती है –
यदि आपको सर्जरी के बाद निम्न में से कोई भी लक्षण महसूस हो रहा है, तो डॉक्टर से इस बारे में बात कर लेनी चाहिए –
साइनसोटमी से कुछ जोखिम व जटिलताएं हो सकती हैं, जैसे –
साइनस को पूरी तरह से रोकथाम करना संभव नहीं है, इसलिए साइनस से पूरी तरह से छुटकारा पाने के लिए साइनसाइटिस सर्जरी करवाना ही सबसे बेहतरीन उपचार है| हालांकि, जिन लोगों को साइनोसाइटिस होने का खतरा अधिक रहता है, वे निम्न तरीकों से इसके जोखिम कारकों को कम कर सकते हैं –
यदि आपको साइनस के कारण नाक में सूजन के अलावा सांस लेने में तकलीफ और बार-बार बलगम बनने की समस्या होती है, तो ऐसे में साइनसाइटिस सर्जरी करवाना बहुत जरूरी हो जाता है| क्योंकि साइनस एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या हो सकती है। नाक के दर्द और परेशान करने वाले लक्षणों से छुटकारा पाने के लिए साइनसाइटिस सर्जरी सबसे सुरक्षित और उपयुक्त इलाज है। भारत में कई स्वास्थ्य बीमा कंपनियां साइनसाइटिस की सर्जरी को बीमा के अंतर्गत कवर करती हैं। हालांकि, ऐसी संभावना है कि स्वास्थ्य बीमा कवरेज एक पॉलिसी से दूसरी पॉलिसी से अलग हो सकती है। यदि आप साइनसाइटिस की सर्जरी करवाने के बारे में सोच रहें हैं तो आपको इसके उपचार के लागत के भुगतान के लिए बीमा कवरेज मिलता हैं। कुछ बीमा कंपनियाँ जो साइनसाइटिस उपचार को कवर कर सकते हैं, जो इस प्रकार हैं:
साइनस का निदान करने के लिए डॉक्टर अस्पताल बुलाकर आपके लक्षणों की करीब से जांच करते है। साथ ही आपसे इस बारे में भी पूछा जाता है कि आपको साइनस के लक्षण कब शुरू हुए हैं और हाल ही में आप किसी एलर्जिक पदार्थ के संपर्क में तो नहीं आए हैं।
इसके अलावा कुछ टेस्ट भी किए जा सकते हैं, जिनकी मदद से साइनोसाइटिस की पुष्टि करने में मदद मिलती है। इन टेस्टों में निम्न शामिल हैं –
साइनोसाइटिस का इलाज करने के लिए डॉक्टर आमतौर पर एंटीबायोटिक व नाक साफ करने वाली (डिकंजेस्टेंट) दवाएं देते हैं। यदि किसी कारण से एंटीबायोटिक दवाओं से साइनसाइटिस ठीक नहीं हो पा रहा है या फिर स्थिति निरंतर गंभीर होती जा रही है, तो साइनसोटमी सर्जरी की जा सकती है।
साइनस का उपचार साइनसोटमी सर्जरी प्रक्रिया से किया जाता है, जिसकी मदद से साइनस संबंधी विभिन्न प्रकार के रोगों का इलाज किया जाता है। साइनस नाक के दोनों तरफ बनी एक थैलीनुमा संरचना (कैविटी) है, जिसके भागों को निम्न के नाम से जाना जाता है –
साइनसोटमी सर्जरी को दो अलग-अलग तरीकों से किया जा सकता है, जिन्हें एक्सटर्नल साइनसोटमी और एंडोस्कोपिक साइनसोटमी के नाम से जाना जाता है।
इन सर्जिकल प्रक्रियाओं के करने के तरीकों के बारे में नीचे बताया गया है –
इसे ओपन साइनसोटमी भी कहा जा सकता है। एक्सटर्नल साइनसोटमी को करने के लिए सर्जन कई अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल करते हैं, जैसे ट्रेफिनेशन और फ्रंटल साइनस ऑब्लिटेरेशन।
ट्रेफिनेशन प्रोसीजर को निम्न तरीके से किया जाता है –
इस प्रक्रिया में नाक के अंदरूनी हिस्से की जांच करने के लिए एंडोस्कोप नामक उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है। इस सर्जरी को करने के लिए निम्न स्टेप किए जा सकते हैं –
साइनस की समस्या मुख्य रूप से नाक संबंधी समस्या जैसे नाक की संरचना का सही न होना की वजह से होती है। इसके अलावा, यह समस्या एलर्जी, जेनेटिक, दांत संबंधी समस्याओं इत्यादि के कारण भी हो सकती है।
साइनस से छुटकारा पाने का सबसे आसान तरीका अपनी दिनचर्या में बदलाव करना है। इसके लिए अधिक मात्रा में पानी पीना, योगा करना, रोग-प्रतिरोधक क्षमता (immunity power) को बढ़ाने वाले खादय पदार्थों को डाइट में करना इत्यादि तरीके को अपनाया जा सकता है।
साइनस की शुरूआत ज़्यादातर जुखाम के लक्षणों जैसे नाक का बहना, चेहरे पर दर्द या खुजली होना इत्यादि तरह से होती है, जो कुछ समय के बाद गंभीर रूप ले लेती है। साइनस की समस्या मुख्य रूप से 1-3 हफ्तों तक रह सकती है।
जी हां, साइनस का इलाज संभव है। इसके लिए दवाई लेना, आयुर्वेदिक इलाज करना, एंटिबायोटिक दवाई का सेवन करना, साइनसाइटिस सर्जरी करना इत्यादि को अपनाया जा सकता है।
जी हां, साइनस का असर आँखों पर पड़ सकता है, जिसकी वजह से उनकी आँखों पर सूजन, आँखों का लाल होना, आँखों पर खुजली होना इत्यादि जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।