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प्रेगनेंसी की नॉर्मल डिलीवरी (Normal Baby Delivery) - प्रक्रिया, लाभ और जटिलताएं

प्रेग्नेंसी के दौरान हर महिला के मन में कई सवाल उठते हैं। यह सवाल तब और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं जब महिलाएं पहली बार गर्भ धारण करती हैं। यदि आपके मन में भी ऐसे ही कुछ प्रश्न हैं, तो आप हमारे सर्वश्रेष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ से सलाह ले सकते हैं। हमारे सभी डॉक्टर नॉर्मल डिलीवरी के साथ साथ सी-सेक्शन सर्जरी का भी विशेष अनुभव रखते हैं। सी-सेक्शन के मुकाबले नॉर्मल डिलीवरी के कई फायदे हैं, जिनके बारे में हम आपको बताने वाले हैं। अभी अपना परामर्श बुक करें और नॉर्मल डिलीवरी के संबंध में हमारे विशेषज्ञों से बात करें।

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प्रेगनेंसी की नॉर्मल डिलीवरी क्या है? - Normal delivery in Hindi

प्रेगनेंसी के दौरान एक महिला के शरीर में बहुत सारे बदलाव आते हैं, जो गर्भावस्था के अलग अलग चरण में बदलते जाते हैं। प्रसव के दौरान भी महिलाओं के जीवन में कुछ बदलाव होते हैं, जो संकेत देते हैं कि वह नॉर्मल डिलीवरी के लिए तैयार हैं। महिला के द्वारा प्राकृतिक रूप से बच्चे की जन्म की प्रक्रिया को नॉर्मल डिलीवरी कहा जाता है। आसान भाषा में कहा जाए तो इस प्रक्रिया में बच्चा प्राकृतिक तरीके से महिला की योनि से बाहर आता है जो सिजेरियन डिलीवरी के बिल्कुल विपरीत होता है। किसी प्रकार की मेडिकल समस्या न होने पर महिलाएं नॉर्मल डिलीवरी के माध्यम से बच्चे को जन्म दे सकती हैं। यह शिशु के जन्म का सबसे आम तरीका है।

सामान्यतः शिशु का जन्म नॉर्मल डिलीवरी से ही कराया जाता है। लेकिन जब गर्भावस्था या फिर प्रसव के दौरान महिलाओं को कोई समस्या नजर आती है, तो स्त्री रोग विशेषज्ञ सिजेरियन डिलीवरी की सलाह दे सकते हैं। कई बार महिलाएं स्वयं ही सिजेरियन डिलीवरी का चुनाव करती हैं। ऐसा होने की संभावना बहुत कम होती है। बच्चे के जन्म के लिए नॉर्मल डिलीवरी बच्चे के स्वास्थ्य और मां को जल्द ठीक करने में मददगार होती है।

नॉर्मल डिलीवरी एक सामान्य प्रक्रिया है, जिसके कारण महिलाओं और उनके बच्चों दोनों को ही जान का खतरा बिल्कुल नहीं होता है। यदि मां को गर्भावस्था के दौरान कोई समस्या नहीं थी और प्रेगनेंसी के दौरान कोई जटिलता भी उत्पन्न नहीं हुई और बच्चे का सिर योनि की तरफ स्थित था, तो बिना किसी समस्या के महिलाओं की नॉर्मल डिलीवरी हो सकती है।

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नॉर्मल डिलीवरी के प्रकार (Types of Normal Delivery)

नार्मल डिलीवरी दो प्रकार की होती हैं, जैसे – 

प्राकृतिक चाइल्ड बर्थ (natural childbirth)

इस प्रक्रिया में महिला को दर्द निवारक दवाएं नहीं दी जाती है और वह प्रसव के दौरान उत्पन्न होने वाली सभी संवेदनाओं को महसूस करती हैं और सहती है। इस प्रसव के दौरान महिलाएं दर्द और दबाव का निरंतर अनुभव करेंगी। जैसे ही शिशु जन्म नलिका में नीचे की ओर उतरता है, तो महिलाएं संकुचन के दौरान निरंतर दबाव का अनुभव करती हैं और साथ ही दबाव में वृद्धि भी महसूस करती हैं। महिला को ऐसा महसूस होगा कि उन्हें मल त्याग करने की इच्छा हो रही है। 

एपीड्यूरल (epidural) का इस्तेमाल

यदि महिला एपीड्यूरल दवा का चयन करती हैं, तो प्रसव के दौरान महसूस की जा रही संवेदनाएं दवा की प्रभावशीलता पर निर्भर करती है। यदि दवा ठीक से तंत्रिकाओं को सुन्न करती हैं, तो महिलाओं को प्रसव के दौरान कुछ भी महसूस नहीं होता है। यदि दवा का प्रभाव कम होता है, तो प्रसव के दौरान महिलाओं को थोड़ा बहुत दर्द होता है।

नॉर्मल डिलीवरी के लक्षण

स्वस्थ महिलाएं जिन्हें कोई भी समस्या नहीं है वह नॉर्मल डिलीवरी का चुनाव कर सकती हैं। सक्रिय जीवन शैली, सामान्य ब्लड प्रेशर (रक्तचाप) और भ्रूण की स्थिति (पोजीशन) संकेत करती है, महिलाएं नॉर्मल डिलीवरी का विचार कर सकती हैं या चुनाव कर सकती हैं। इसके अतिरिक्त योनि से प्रसव के कुछ और लक्षण भी है, जिसके बारे में नीचे बताया गया है – 

  • गर्भावस्था के 30 वें सप्ताह से गर्भावस्था के 34 वें सप्ताह के बीच जब भ्रूण अपने सिर की पोजीशन को बदलकर नीचे की ओर आ जाए, तो आप समझ जाएं कि वह जन्म के लिए तैयार है। इस स्थिति में नॉर्मल डिलीवरी संभव हो पाती है। 
  • भ्रूण के सिर से माता की श्रोणि (पेल्विक) के आसपास के भाग पर दबाव पड़ता है और ब्लेडर भी सिकुड़ जाता है, जिसकी वजह से उन्हें बार-बार पेशाब आने लगता है। 
  • बच्चे की पोजीशन बदलने और सिर के नीचे की ओर आने से महिलाओं की पीठ के निचले भाग पर दबाव की वजह से दर्द होने लगता है। 
  • योनि से सफेद, गुलाबी और रक्त की तरह तरल पदार्थ ज्यादा निकलता है। सामान्यतः यह स्वस्थ और नॉर्मल प्रेगनेंसी को दर्शाता है।
  • हार्मोनल बदलाव के कारण पेट ठीक नहीं रहता है और इसके कारण पेट में ऐंठन और अन्य समस्याएं हो सकती है। 
  • स्तनों में सूजन भी नॉर्मल डिलीवरी का लक्षण है। जैसे-जैसे महिला प्रेगनेंसी के अंतिम चरण में पहुंचती हैं, उनको स्तनों में भारीपन महसूस होने लगता है।

बच्चेदानी में भ्रूण तरल पदार्थ की थैली के अंदर होता है, जिसको तोड़कर ही वो जन्म लेता है, लेकिन कई बार प्रसव से पूर्व ही द्रव से भरी थैली खुल जाती है। इस अवस्था में महिला को तुरंत डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।

नॉर्मल डिलीवरी से पहले किस प्रकार की तैयारी करनी चाहिए?

नॉर्मल डिलीवरी एक प्राकृतिक प्रसव प्रक्रिया है, जिसका चुनाव हर महिला के द्वारा अक्सर किया जाता है। कुछ मामलों में नॉर्मल डिलीवरी के दौरान समस्या उत्पन्न हो जाती है, जिसके कारण सी-सेक्शन की तरफ महिला को अग्रसर होना पड़ता है। इससे बचने के लिए महिलाओं को निम्नलिखित दिशा-निर्देश का पालन करना चाहिए – 

  • पर्याप्त मात्रा में पानी पीएं: इससे शरीर में पानी की कमी नहीं होगी और बच्चे और मां दोनों के स्वास्थ्य को कोई समस्या नहीं होगी। 
  • खानपान पर ध्यान दें: संतुलित आहार और खान पान महिला को एक स्वस्थ वजन बनाए रखने में मदद करता है। इससे मोटापा भी दूर रहता है। 
  • तनाव से दूर रहें: तनाव कई बीमारियों का कारण है। प्रेगनेंसी के दौरान तनाव से बिल्कुल दूर रहना चाहिए। यह मां और शिशु दोनों की सेहत के लिए जरूरी है। तनाव से दूर रहने के लिए मेडिटेशन कर सकते हैं, अपने पसंद के गाने सुन सकते हैं और किताबें पढ़ सकते हैं। 
  • योग और व्यायाम करें: जितना हो सके पैदल चलें और योग और व्यायाम पर ध्यान दें। इससे मां और बच्चे दोनों का ही स्वास्थ्य अच्छा हो जाता है।
  • स्त्री-रोग विशेषज्ञ से मिलें: समय समय पर स्त्री रोग विशेषज्ञ से मिलना रोगी के लिए लाभकारी साबित हो सकता है। इसके लिए अपॉइंटमेंट पहले से ही बुक करें।

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प्रेगनेंसी की नॉर्मल डिलीवरी की प्रक्रिया

नॉर्मल डिलीवरी की प्रक्रिया तीन चरणों में होती है। चलिए सभी को एक एक करके समझते हैं:-

नॉर्मल डिलीवरी प्रक्रिया का पहला चरण:

इस चरण को डाइलेशन का चरण भी कहते हैं। इस चरण में संकुचनों की वजह से ग्रीवा (सर्विक्स) धीरे-धीरे खुलने लगती है। ग्रीवा बच्चेदानी की गर्दन को कहा जाता है। इस चरण के दौरान मां को पेल्विक (श्रोणि) पर अतिरिक्त दबाव और पीठ दर्द का अनुभव हो सकता है, जिसके पीछे का कारण संकुचन होता है। जो महिलाएं अपने पहले संतान को जन्म देने वाली होती हैं, उनके लिए यह अवधि 7 से 8 घंटे से लेकर 13 घंटे या उससे अधिक तक हो सकती है। पहले चरण को तीन अलग अलग भाग में बांटा गया है, जिसमें से दो है शुरुआती प्रसव (Early labor) और सक्रिय प्रसव (Active labor)। इसके बाद महिलाओं को ग्रीवा में तेज संकुचन और दर्द का अनुभव होता है जो दूसरे भाग का संकेत देता है। 

इसके अतिरिक्त एक और चरण भी है, जिसे अंग्रेजी में प्रीलेबर या लेटेंट फेज कहा जाता है। यह चरण तब शुरू होता है, जब महिला का शरीर प्रसव के पहले चरण के लिए तैयार हो रहा होता है।

नॉर्मल डिलीवरी प्रक्रिया का दूसरा चरण:

इस चरण में ही संतान जन्म लेता है। यह तब शुरू होता है जब ग्रीवा पूरी तरह खुल जाता है और शिशु के जन्म के साथ यह चरण समाप्त हो जाता है। इस चरण में संकुचन बहुत तेज होता है। वहीं मां को डॉक्टर लगातार सलाह देते हैं कि वह बच्चे को लगातार धक्का दें या पुश करें। प्रक्रिया के दौरान महिला को पूरी तरह से प्रोत्साहित किया जाता है, ताकि वह होश में रहे और बच्चे को गर्भाशय ग्रीवा की तरफ पुश करे। कुछ मामलों में डॉक्टर सक्शन डिवाइस का भी प्रयोग करते हैं। 

नॉर्मल डिलीवरी प्रक्रिया का तीसरा चरण:

तीसरे चरण का संबंध प्लेसेंटा से होता है। इस चरण की शुरुआत शिक्षु के जन्म के साथ ही हो जाती है। इस चरण में भी मां को संकुचन का अनुभव होता रहता है, लेकिन इसकी तीव्रता पहले के मुकाबले कम होती है। यह संकुचन प्लेसेंटा को गर्भाशय से अलग करने और बाहर निकालने में मदद करते हैं। डॉक्टर फिर सावधानी से जांच करते हैं कि यह पूरी तरह से बाहर निकल गया है या नहीं। 

नॉर्मल डिलीवरी के फायदे - Benefits of Normal delivery

सिजेरियन डिलीवरी के मुकाबले नॉर्मल डिलीवरी के बहुत सारे लाभ है, जिसके कारण बहुत सारी महिलाएं इस प्रक्रिया का चुनाव करती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख फायदों के बारे में नीचे बताया गया है:-

  • कम समय के लिए भर्ती: सबसे प्रमुख लाभ नॉर्मल डिलीवरी का है कम समय के लिए अस्पताल में भर्ती। यदि बच्चे का जन्म नॉर्मल डिलीवरी से हुआ है, तो मां और बच्चे को जल्द से जल्द छुट्टी मिल जाएगी वहीं सिजेरियन प्रक्रिया के बाद जब तक महिलाएं पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं होती है, तब तक उन्हें घर नहीं भेजा जाता है।
  • संक्रमण की कम संभावना: नॉर्मल डिलीवरी में किसी भी प्रकार का कट नहीं लगता है, जिसके कारण संक्रमण की दर भी सबसे कम होती है। 
  • जल्द से जल्द रिकवरी: नॉर्मल डिलीवरी के बाद महिलाएं जल्द से जल्द अपने सामान्य काम कर सकती हैं और अपने नवजात बच्चे की देखरेख कर सकती हैं। 
  • ऑपरेशन के बाद रक्त हानि की कम संभावना: सिजेरियन डिलीवरी के बाद रक्त हानि या फिर जख्म पर मवाद बन सकता है, लेकिन नॉर्मल डिलीवरी में ऐसा होने की संभावना बहुत कम है। 
  • बच्चे का बेहतर स्वास्थ्य: ऐसा कई मामलों में देखा गया है कि नॉर्मल डिलीवरी के बाद एक मां अपने बच्चे की देखभाल जल्द शुरू कर देती हैं, वहीं सिजेरियन ऑपरेशन के कम से कम 2-3 हफ्ते तक मां बच्चे की देखभाल नहीं कर पाती है। 
  • श्वास संबंधित समस्याओं में कमी: जो बच्चे योनि मार्ग से जन्म लेते हैं, उन्हें श्वास संबंधित समस्या नहीं होती है। 

यौनि से प्रसव की जटिलताएं

हालांकि नॉर्मल डिलीवरी एक सुरक्षित प्रक्रिया है, लेकिन इसमें कुछ जोखिम और जटिलताएं भी होती हैं, जो प्रसव से पहले या बाद में हो सकती हैं। चलिए कुछ जटिलताओं को समझते हैं – 

  • प्रसव पीड़ा और नॉर्मल डिलीवरी एक लंबी प्रक्रिया है, जिसके दौरान महिलाओं को शारीरिक कष्ट से गुजरना पड़ता है। पहली बार मां बनने वाली महिलाएं औसतन चार से आठ घंटे सक्रिय प्रसव में बिताती हैं, जो तब होता है, जब उसकी गर्भाशय ग्रीवा पूरी तरह से फैल जाती है और उनका शरीर प्रसव के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाता है। 
  • योनि से प्रसव के दौरान, यह जोखिम होता है कि जब भ्रूण ग्रीवा से गुजरता है, तो योनि के आसपास की त्वचा और ऊतकों में खिंचाव आ सकता है, जिसके कारण वह फट भी सकता है। अधिक खिंचाव होने पर मूत्र और आंत्र कार्यों को नियंत्रित करने वाली पेल्विक मांसपेशियों में कमजोरी या चोट भी आ सकती है जिससे रोगी को बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। 
  • जो महिलाएं योनि से प्रसव का चुनाव करती हैं, उनमें मूत्र असंयम और पेल्विक ऑर्गन प्रोलैप्स का खतरा होता है। इसके कारण अक्सर महिलाओं को खांसने, छींकने या हंसने पर मूत्र का रिसाव। 
  • योनि से प्रसव के कारण पेरिनेम, योनि और गुदा के बीच के क्षेत्र में लंबे समय तक दर्द रह सकता है।
  • यदि किसी महिला को लंबे समय तक प्रसव पीड़ा हुई हो या यदि बच्चा बड़ा हो, तो योनि जन्म प्रक्रिया के दौरान ही बच्चे को चोट लग सकती है, जिसके परिणामस्वरूप बच्चे के सिर पर भी चोट लग सकती है या कॉलरबोन भी टूट सकता है।

योनि से प्रसव के बाद जीवनशैली में बदलाव

यौनि प्रसव के बाद, एक मां के लिए अपने स्वास्थ्य की उचित देखभाल करना बहुत महत्वपूर्ण है। मुख्य रूप से उन्हें अपने आहार और जीवनशैली में बदलाव करने की आवश्यकता होगी। आमतौर पर, डॉक्टर बच्चे के जन्म के बाद महिला को आहार और जीवनशैली में बदलाव करने की सलाह देते हैं। हमने नीचे कुछ बदलावों के बारे में विस्तार से बताया है:-

  • संतुलित आहार का सेवन करें: संतुलित आहार व्यक्ति के जीवन में एक अहम भूमिका निभाता है। प्रसव के बाद महिलाओं को स्तनपान कराना होता है, जिसके लिए एक मां को पौष्टिक खाद्य पदार्थों के सेवन का अवश्य ध्यान देना चाहिए। अपने भोजन में साबुत अनाज, फल, सब्जियां, लीन प्रोटीन और हेल्दी फैट वाले भोजन को शामिल करना चाहिए। स्वयं को हाइड्रेटेड रखें और शरीर में कैलोरी की कमी न होने दें।
  • अपने आहार में अधिक फाइबर शामिल करें: स्वस्थ पाचन क्रिया और कब्ज को रोकने के लिए फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ जैसे होल ग्रेन, फल, सब्जियां और फलियां बहुत लाभकारी साबित हो सकती हैं। प्रसव के बाद इसकी सहायता से बवासीर से बचने में मदद मिलती है। 
  • आयरन युक्त भोजन: आयरन की सहायता से प्रसव के बाद शरीर में थकान नहीं होती है और शरीर में खून की कमी भी नहीं होती है। 
  • कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थ: हड्डियों के स्वास्थ्य और स्तनपान में सहायता के लिए यदि आवश्यक हो तो कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थ जैसे डेयरी उत्पाद, पत्तेदार साग-सब्जियां, वेगन-दूध (सोया मिल्क) और कैल्शियम की खुराक का सेवन करें।
  • हेल्थ स्क्रीनिंग का ध्यान दें: प्रसव के बाद भी स्वास्थ्य की जांच आवश्यक है। समय समय पर अपने डॉक्टर से परामर्श लेते रहें और अपने साथ अपने बच्चे के भी स्वास्थ्य का मूल्यांकन करें।
  • प्रोटीन का सेवन बढ़ाएं: प्रोटीन का काम शरीर के टिश्यू को रिपेयर करना है। जितना हो सके हेल्दी प्रोटीन को अपने आहार में जोड़ें। 
  • सलाह के अनुसार सप्लिमेंट लें: डॉक्टर प्रसव के बाद पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए आयरन, कैल्शियम, विटामिन डी, या ओमेगा -3 फैटी एसिड जैसे कुछ सप्लीमेंट का सुझाव दे सकते हैं। डॉक्टर के सलाह के अनुसार ही दवाओं का सेवन करें। 
  • धीरे-धीरे व्यायाम करना शुरू करें: डॉक्टर के सलाह के अनुसार धीरे धीरे व्यायाम को शुरू करें। शुरुआत में टहलने से महिला को बहुत लाभ मिलेगा। धीरे धीरे अपने कार्य की गतिविधियों को बढ़ाएं। व्यायाम शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों को ही बेहतर करने में मदद करता है। 
  • वजन कम करने में जल्दबाजी न करें: कुछ महिलाएं प्रसव के बाद वजन कम करने की जल्दबाजी करती हैं। उन्हें ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए। वह जल्दबाजी में कोई गलत कदम ले सकती हैं, जिसके कारण उन्हें निकट भविष्य में खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। धीरे-धीरे वजन कम करने के लिए हल्के व्यायाम से शुरू करें और संतुलित आहार का पालन करें। यह सभी चीजें रोगी को रिकवरी में भी मदद करेगी।
  • आराम करें: आराम शरीर के लिए सबसे ज्यादा आवश्यक है। नींद पूरी करें और शरीर को रिकवर होने का पूरा समय दें। 
  • पेल्विक फ्लोर को मजबूत करने के लिए व्यायाम करें: पेल्विक फ्लोर को मजबूत करने के लिए व्यायाम एक महिला के लिए बहुत लाभकारी साबित हो सकती है। कीगल व्यायाम एक उदाहरण है। 

नॉर्मल डिलीवरी के बाद रिकवरी और ऑपरेशन के बाद की देखभाल

नॉर्मल डिलीवरी या फिर योनि प्रसव के बाद महिलाओं को रिकवरी रूम में ट्रांसफर कर दिया जाता है। वहां प्रसव के बाद उनकी देखभाल की जाती है। मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य की निगरानी की जाती है। नॉर्मल डिलीवरी के बाद महिलाएं जल्द ठीक हो जाती है। यहां एक बात का खास ख्याल रखना होगा कि हर महिला के लिए रिकवरी का समय अलग अलग हो सकता है। निम्न चरणों में नॉर्मल डिलीवरी के बाद महिला की देखभाल की जाती है-

  • सामान्य प्रसव के तुरंत बाद शुरुआती घंटों में महिला हल्के संकुचन या दर्द का सामना करना पड़ सकता है। ऐसा तब होता है जब शरीर प्लेसेंटा को बाहर निकालने का प्रयास करता है। ऐसा करने से बच्चेदानी अपने मूल आकार में फिर से वापस आ जाता है। 
  • डॉक्टर किसी भी तरह के घाव की जांच करने के लिए योनि क्षेत्र का मूल्यांकन करते हैं और सामान्य प्रसव के बाद देखभाल के लिए कुछ दिशा-निर्देश देते हैं, जिनका महिला को अवश्य पालन करना चाहिए। 
  • आमतौर पर, प्रसव के बाद के दिनों में, महिलाओं को हल्की रक्त हानि का अनुभव भी हो सकता है। यह रक्त हानि पीरियड्स के समान ही होते है, जो अपने आप धीरे धीरे ठीक हो जाती है। इसे सैनिटरी पैड की सहायता से ठीक किया जा सकता है। रिकवरी के दौरान टैम्पॉन या मैंस्ट्रुअल कप का उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि प्रसव के बाद योनि नाजुक स्थिति में होती है। 
  • प्रसव के दौरान योनि में किसी भी प्रकार की समस्या के कारण महिला को पेरिनियल क्षेत्र में कुछ असुविधा का सामना करना पड़ सकता है। इस स्थिति के इलाज के लिए डॉक्टर दर्द निवारक दवाओं का सुझाव दे सकते हैं या फिर डॉक्टर इस क्षेत्र पर गरम या ठंडी सेक लगाने का भी सुझाव देते हैं। 
  • बच्चे को स्तनपान कराने का सुझाव डॉक्टर के द्वारा दिया जा सकता है। इससे मां और बच्चों दोनों को ही लाभ होता है। यदि इस स्थिति में कोई समस्या आती है, तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें। 
  • रिकवरी अवधि के दौरान महिलाएं अपने बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर अत्यधिक चिंतित रहती है, जिसके कारण डॉक्टर महिलाओं को अपने स्वास्थ्य का भी ख्याल रखने को कह सकते हैं। इसके लिए डॉक्टर महिलाओं को उनके आहार में कुछ बदलाव के साथ साथ स्वयं को हाइड्रेट रखने का सुझाव देते हैं। प्रसव के बाद शरीर को आराम की बहुत आवश्यकता होती है, इसलिए नींद पूरी करें और धीरे-धीरे अपना काम शुरू करें। 

नार्मल डिलीवरी के बाद शरीर में बदलाव

एक महिला के शरीर में प्रसव से पहले और बाद में कई परिवर्तन आते हैं, जन्म देने के बाद भी महिला के शरीर में कई बदलाव देखने को मिलते हैं जैसे – 

  • एपीसीओटॉमी या लैसरेशन साइट पर दर्द (Pain at the site of the episiotomy or laceration) 
  • स्तन में पीड़ा 
  • बवासीर (गर्भावस्था बवासीर का मुख्य कारण है)
  • हॉट और कोल्ड फ्लैशेस
  • मल और मूत्र की असंयमितता (Urinary and fecal incontinence)
  • प्रसव के बाद भी दर्द का अनुभव होना
  • योनि से तरल पदार्थ का निकलना
  • जन्म देने के कुछ दिनों या हफ़्तों बाद तक चिड़चिड़ापन महसूस होना या फिर व्यवहार में बदलाव
  • स्ट्रेच मार्क्स

नॉर्मल डिलीवरी में कितना खर्च आता है? - Normal Delivery Cost

भारत में योनि में प्रसव के इलाज का खर्च कई कारकों के द्वारा प्रभावित होता है, जैसे – चयनित शहर, अस्पताल की पसंद और अतिरिक्त सुविधाओं इत्यादि। इस प्रक्रिया का खर्च औसतन 15,000 रुपये से 40,000 रुपये तक हो सकता है। हालांकि, यह सिर्फ एक अनुमान है, और वास्तविक लागत हर महिला के लिए अलग अलग हो सकती है। इलाज में लगने वाले सटीक खर्च का पता डॉक्टर के साथ परामर्श के दौरान चल सकता है। इस पूरे प्रक्रिया में लगने वाले खर्च को कई कारक प्रभावित कर सकते हैं जैसे – 

  • डिलीवरी का स्थान
  • चुना गया अस्पताल 
  • प्रक्रिया के दौरान प्रयोग होने वाली दवाओं का खर्च
  • डॉक्टर की फीस
  • मेडिकल टेस्ट में लगने वाला खर्च

यदि आप प्रसव में लगने वाले खर्च के संबंध में किसी जानकारी की तलाश में है, तो आप हमारे सर्जन से संपर्क कर सकते हैं।

क्या नॉर्मल डिलीवरी बीमा कंपनियों के द्वारा कवर किया जाता है?

हां, भारत में, बीमा कंपनियां अपनी पॉलिसियों में गर्भावस्था से संबंधित खर्चों को कवर करती हैं। कई बीमा कंपनियां विशेष रूप से तैयार की गई मातृत्व बीमा योजनाएं अपने पॉलिसी होल्डर को देती हैं, जो महिलाओं के लिए लाभकारी साबित हो सकती है।

कुछ लोग इस प्रकार की पॉलिसी स्टैंड-अलोन पॉलिसी के रूप में खरीदती हैं, जबकि अन्य इसे अपनी मौजूदा पॉलिसी में ऐड-ऑन बीमा के रूप में शामिल करते हैं। यह अतिरिक्त प्रीमियम का भुगतान करके किया जा सकता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यदि महिला पहले से ही गर्भवती है, तो हो सकता है कि नई पॉलिसी में इस वर्तमान गर्भावस्था को न कवर किया जाए। आम तौर पर इस प्रकार की पॉलिसी में 3 से 4 साल का वेटिंग पीरियड होता है।

मातृत्व बीमा (Maternity policy) नॉर्मल और सिजेरियन-सेक्शन दोनों डिलीवरी के लिए कवरेज प्रदान करती है। कुछ बीमा कंपनी अपनी पॉलिसियों के तहत प्रसव से पहले और बाद के खर्चों और नवजात शिशु के कवरेज के अलावा जटिलताओं के कारण गर्भावस्था को समाप्त करने के खर्च को भी कवर करती है। हालांकि, अलग अलग बीमा कंपनियों के द्वारा अलग अलग पॉलिसियों के लिए अलग अलग कवरेज राशि प्रदान की जाती है। अधिक जानकारी के लिए हमारे बीमा प्रदाता से संपर्क करना चाहिए। 

नॉर्मल डिलीवरी से पहले अपनी स्त्री रोग विशेषज्ञ से पूछें यह प्रश्न

सवाल पूछना हमेशा ही एक अच्छा विकल्प साबित होता है। यदि नॉर्मल डिलीवरी से पहले महिलाएं प्रक्रिया से संबंधित अपने सवालों के जवाब ढूंढती हैं, तो इसका सीधा लाभ उन्हें भविष्य में मिलेगा। तैयारी सुनिश्चित करने के लिए डिलीवरी से पहले कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है। नीचे कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न दिए गए हैं, जो महिलाओं को योनि द्वारा प्रसव से पहले स्त्री रोग विशेषज्ञ से पूछने चाहिए – 

  • क्या नॉर्मल डिलीवरी मेरे लिए उपयुक्त है?
  • मेरे लिए नॉर्मल डिलीवरी सर्वोत्तम विकल्प क्यों है?
  • सी-सेक्शन के मुकाबले नॉर्मल डिलीवरी के क्या फायदे हैं?
  • डिलीवरी प्रक्रिया के दौरान क्या होगा?
  • नॉर्मल डिलीवरी की तैयारी कैसे करें?
  • प्रसव पीड़ा कैसी होती है?
  • नॉर्मल डिलीवरी से पहले क्या तैयारी करनी चाहिए?
  • योनि प्रसव के विभिन्न चरण क्या है?
  • नॉर्मल डिलीवरी में कितना समय लगता है?
  • योनि प्रसव से पहले, दौरान या बाद में क्या जटिलताएं परेशान कर सकती हैं?
  • प्रसव और प्रसव के दौरान मेरी और मेरे बच्चे दोनों की सेहत की निगरानी कैसे होगी?
  • योनि प्रसव के बाद क्या देखभाल और सहायता प्रदान की जाती है?
  • क्या कोई विशेष संकेत या लक्षण हैं जिन पर मुझे योनि प्रसव के बाद ध्यान देना चाहिए?
  • क्या नॉर्मल डिलीवरी मेरे बच्चे के लिए सुरक्षित है?

नॉर्मल डिलीवरी से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

नॉर्मल डिलीवरी में कितना समय लगता है?

सामान्य तौर पर, पहली बार मां बनने वाली महिलाओं को नॉर्मल डिलीवरी में करीब सात से आठ घंटे का समय लगता है, जबकि दोबारा मां बनने पर यह समय कम हो जाता है। गर्भाशय ग्रीवा के फैलाव के आधार पर डिलीवरी का समय कम या ज्यादा हो सकता है। हर महिला की स्थिति अलग अलग होती है। अगर डिलीवरी में समय कम या ज्यादा लगे, तो घबराएं नहीं। अपने डॉक्टर की बात सुने और उनकी बातों का सही से पालन करें।

नॉर्मल डिलीवरी के दौरान कितना दर्द होता है?

अधिकांश महिलाओं के लिए योनि प्रसव एक दर्दनाक स्थिति है। योनि के माध्यम से बच्चे को जन्म देने वाली महिलाओं को नॉर्मल डिलीवरी के दौरान अक्सर पेट, कमर और पीठ में तेज ऐंठन और तेज दर्द का अनुभव होता है। हर महिला का शरीर अलग अलग होता है, जिसके कारण उनके दर्द की तीव्रता भी अलग अलग हो सकती है।

नॉर्मल डिलीवरी के कितने दिन बाद संबंध बनाना चाहिए?

नॉर्मल डिलीवरी या योनि से प्रसव के बाद, संबंध बनाने के लिए महिलाओं को कम से कम 6 से 8 सप्ताह तक की प्रतीक्षा करनी चाहिए। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि डिलीवरी के बाद महिलाओं की योनी के ऊतक पतले और संवेदनशील हो जाते हैं। दोबारा संभोग शुरू करने से पहले योनि, गर्भाशय और गर्भाशय ग्रीवा को अपने सामान्य आकार में लौटने और ठीक होने का समय देना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। जटिलताओं से बचने के लिए योनि से प्रसव के बाद सेक्स करने से पहले डॉक्टर से परामर्श करने की सलाह दी जाती है।

योनि से प्रसव के लिए कितने टांके आवश्यक है?

शोध के अनुसार, योनि से प्रसव कराने वाली लगभग 70% महिलाओं को सामान्य प्रसव के बाद टांके लगाए जाते हैं। आमतौर पर, सामान्य प्रसव के बाद टांके को तीन परतों की आवश्यकता होती है। सामान्य प्रसव के बाद आवश्यक टांको की संख्या मामले की गंभीरता के आधार पर भिन्न हो सकती है।

योनि प्रसव के बाद कितने दिनों तक अस्पताल में रहने की आवश्यकता होती है?

अधिकांश मामलों में सामान्य प्रसव के 2 से 3 दिनों के भीतर ही छुट्टी दे दी जाती है। हालांकि, अस्पताल में रहने की अवधि माँ और बच्चे के स्वास्थ्य के आधार पर भिन्न हो सकती है।

सी-सेक्शन और नॉर्मल डिलीवरी में से कौन सी प्रक्रिया सुरक्षित है?

सामान्य तौर पर, नॉर्मल डिलीवरी को एक सुरक्षित प्रक्रिया की सूची में रखा जाता है। दूसरी ओर, सी-सेक्शन डिलीवरी कुछ जोखिमों से जुड़ी होती है। हालांकि, कई मामलों में सी-सेक्शन एक आवश्यक प्रक्रिया मानी जाती है। ऐसा अक्सर तब होता है, जब मां के स्वास्थ्य को समस्या होती है।

क्या नॉर्मल डिलीवरी बिना दर्द के हो सकती है?

बहुत से अस्पताल या नर्सिंग होम दर्द रहित प्रसव के बारे में प्रचार करते हैं। इसका मतलब यह है कि वे आपको एपिड्यूरल देंगे, जो कि दर्द से राहत का एक प्रभावी विकल्प है। और इससे दर्द काफी हद तक कम हो जाता है।

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Content Reviewed By
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Dr. Anoop Gupta
30 Years Experience Overall
Last Updated : October 1, 2024

हमारे मरीजों की प्रतिक्रिया

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